नरसिंह वर्मन प्रथम: Difference between revisions
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*वह इस वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। उसने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित कर उत्तर दिशा में विजय यात्रा प्रारम्भ की, और चालुक्यराज [[पुलकेशी द्वितीय]] को परास्त कर [[वातापी]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। | *वह इस वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। उसने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित कर उत्तर दिशा में विजय यात्रा प्रारम्भ की, और चालुक्यराज [[पुलकेशी द्वितीय]] को परास्त कर [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। | ||
*नरसिंहवर्मा की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी ने वीरगति प्राप्त की थी। | *नरसिंहवर्मा की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी ने वीरगति प्राप्त की थी। | ||
*प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी वातापी को जीत लेना नरसिंहवर्मा के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया। *सिहलद्वीप पर आक्रमण करके नरसिंहवर्मा ने अपनी नौसेना की शक्ति का परिचय दिया। | *प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी वातापी को जीत लेना नरसिंहवर्मा के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया। *सिहलद्वीप पर आक्रमण करके नरसिंहवर्मा ने अपनी नौसेना की शक्ति का परिचय दिया। |
Revision as of 10:50, 29 September 2010
- महेन्द्रवर्मा के बाद उसका पुत्र नरसिंहवर्मा प्रथम काञ्जी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
- वह इस वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। उसने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित कर उत्तर दिशा में विजय यात्रा प्रारम्भ की, और चालुक्यराज पुलकेशी द्वितीय को परास्त कर वातापी पर क़ब्ज़ा कर लिया।
- नरसिंहवर्मा की सेना के साथ युद्ध करते हुए ही पुलकेशी ने वीरगति प्राप्त की थी।
- प्रतापी चालुक्यों को परास्त कर उसकी राजधानी वातापी को जीत लेना नरसिंहवर्मा के जीवन की गौरवमयी घटना है। इसीलिए उसने 'वातापीकोड' का विरुद भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया। *सिहलद्वीप पर आक्रमण करके नरसिंहवर्मा ने अपनी नौसेना की शक्ति का परिचय दिया।
- सिंहल के राजसिंहासन पर किसका अधिकार हो, इस सवाल को लेकर वहाँ गृहकलह चल रहा था।
- राजपद के अन्यतम उम्मीदवार मानवम्म ने नरसिंहवर्मा की शरण ली, और उसकी सहायता के लिए पल्लवराज ने दो बार नौसेना द्वारा सिंहल पर आक्रमण किया।
- नरसिंहवर्मा का एक विरुद 'महामल्ल' भी था, इसी को लेकर उसने 'महामल्लपुरम' नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर में उसने अनेक विशाल मन्दिरों का निर्माण कराया, जिनमें से 'धर्मराजरथ मन्दिर' अब तक भी विद्यमान है, और उसके गौरव व महत्ता का साक्षी है।
- भारत का पर्यटन करते हुए चीनी यात्री ह्यू-एन-त्सांग पल्लव राज्य में भी गया था। उसने इस प्रदेश को 'रत्नों का आकर' लिखा है।
- इस प्रसिद्ध चीनी यात्री के अनुसार काञ्जी में 100 संघाराम थे, जिनमें 1000 भिक्षु निवास करते थे।
- बौद्ध विहारों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी 80 मन्दिर और बहुत से चैत्य वहाँ पर थे।
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