रुद्राक्ष: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
 
m (1 अवतरण)
(No difference)

Revision as of 10:51, 29 March 2010

रुद्राक्ष / Rudraksh

  • उपनिषद में रुद्राक्ष को 'शिव के नेत्र' कहा गया है। इन्हें धारण करने से दिन-रात में किये गये सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सौ अरब गुना पुण्य प्राप्त होता है। रुद्राक्ष में हृदय सम्बन्धी विकारों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है। ब्राह्मण को श्वेत रुद्राक्ष, क्षत्रिय को लाल, वैश्य को पीला और शूद्र को काला रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
  • एकमुखी रुद्राक्ष को साक्षात परमतत्त्व का रूप माना गया है,
  • दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर का रूप कहा गया है,
  • तीनमुखी रुद्राक्ष को अग्नित्रय रूप कहा गया है,
  • चतुर्मुखी रुद्राक्ष को चतुर्मुख भगवान का रूप माना गया है,
  • पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुंह वाले शिव का रूप है,
  • छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय का रूप है, इसे गणेश का रूप भी कहते हैं।
  • सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति आदि का रूप है,
  • अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ माताओं का,
  • नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का,
  • दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का,
  • ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का,
  • बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु का,
  • तेरहमुखी रुद्राक्ष मानोकामनाओं और सिद्धियों को देने वाला तथा
  • चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति साक्षात भगवान के नेत्रों से हुई मानी गयी है, जो सर्व रोगहारी है।
  • रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का त्याग कर देना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से हृदय शान्त रहता है, उत्तेजना का अन्त होता है और हजारों तीर्थों की यात्रा करने का फल प्राप्त होता है तथा व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता हैं।