दक्षिणा: Difference between revisions
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अतएव भूमि अदेय समझी गयी। किंतु मध्य युग आते-आते भूमि भी राजा द्वारा दक्षिणा में दी जाने लगी। फिर भी इसका अर्थ था भूमि से राज्य को जो आय होती थी, उसका दान। प्रत्येक धार्मिक अथवा मांगलिक कृत्य के अंत में पुरोहित ऋत्विज् अथवा ब्राह्मणों को दक्षिणा देना आवश्यक समझा जाता है। इसके बिना शुभ कार्य का सुफल नहीं मिलता, ऐसा विश्वास है। ब्रह्मचर्य अथवा अध्ययन समाप्त होने पर शिष्य द्वारा आचार्य को दक्षिणा देने का विधान गृह्मसूत्रों में पाया जाता है। | अतएव भूमि अदेय समझी गयी। किंतु मध्य युग आते-आते भूमि भी राजा द्वारा दक्षिणा में दी जाने लगी। फिर भी इसका अर्थ था भूमि से राज्य को जो आय होती थी, उसका दान। प्रत्येक धार्मिक अथवा मांगलिक कृत्य के अंत में पुरोहित ऋत्विज् अथवा ब्राह्मणों को दक्षिणा देना आवश्यक समझा जाता है। इसके बिना शुभ कार्य का सुफल नहीं मिलता, ऐसा विश्वास है। ब्रह्मचर्य अथवा अध्ययन समाप्त होने पर शिष्य द्वारा आचार्य को दक्षिणा देने का विधान गृह्मसूत्रों में पाया जाता है। | ||
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Revision as of 12:30, 10 January 2011
यज्ञ करने वाले पुरोहितों को दिये गये दान को (शुल्क) को दक्षिणा कहते हैं। ऐसे अवसरों पर 'गाय' ही प्राय: शुल्क होती थी। दानस्तुति तथा ब्राह्मणों में इसका और भी विस्तार हुआ है, जैसे गाय, अश्व, भैंस, ऊँट आभूषण आदि। इसमें भूमि का समावेश नहीं है, क्योंकि भूमि पर सारे कुटुम्ब का अधिकार होता था और बिना सभी सदस्यों की अनुमति के इसका दान नहीं किया जा सकता था।
अतएव भूमि अदेय समझी गयी। किंतु मध्य युग आते-आते भूमि भी राजा द्वारा दक्षिणा में दी जाने लगी। फिर भी इसका अर्थ था भूमि से राज्य को जो आय होती थी, उसका दान। प्रत्येक धार्मिक अथवा मांगलिक कृत्य के अंत में पुरोहित ऋत्विज् अथवा ब्राह्मणों को दक्षिणा देना आवश्यक समझा जाता है। इसके बिना शुभ कार्य का सुफल नहीं मिलता, ऐसा विश्वास है। ब्रह्मचर्य अथवा अध्ययन समाप्त होने पर शिष्य द्वारा आचार्य को दक्षिणा देने का विधान गृह्मसूत्रों में पाया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ