चंबा: Difference between revisions

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चंबा में भूरीसिंह नाम का एक संग्रहालय है, जहाँ चंबा घाटी की प्राचीन कला के विभिन्न पक्ष अपनी मूक, किंतु जीवंत कहानी को कहते प्रतीत होते हैं। यह संग्रहालय [[भारत]] के पाँच प्रमुख प्राचीन संग्रहालयों मे से एक है। इस संग्रहालय का निर्माण [[1908]] ई. में चंबा नरेश भूरीसिंह ने डच विद्वान डॉ. फोगल की प्रेरणा से किया था। इस संग्रहालय में पाँच हजार से अधिक दुर्लभ कलाकृतियाँ हैं। विश्व प्रसिद्ध चंबा रुमाल भी यहाँ की विरासत है।  


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वर्मन वंश की राजकुमारी चंपा के नाम पर हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में रावी नदी के किनारे बसे चंबा शहर को मंदिरों की नगरी, कलानगरी और मनोरम पर्यटन स्थल कहलाने का गौरव प्राप्त है। चंबा के संस्थापक साहिल वर्मा ने 820 ई. में इस शहर का नामकरण अपनी पुत्री चंपा के नाम पर किया। साहिल वर्मा द्वारा निर्मित चमेसनी देवी का मन्दिर ऐतिहासिक चौगान के पास आज भी विद्यमान है। वास्तुकला की दृष्टि से यह मन्दिर अद्वितीय है। लक्ष्मीनारायण मन्दिर समूह तो चंबा का सर्वप्रसिद्ध देवस्थल है। इस मन्दिर समूह में महाकाली, हनुमान, नंदीगण के मंदिरों के अलावा विष्णु एवं शिव के तीन-तीन मंदिर हैं। चंबा की प्राचीन लक्ष्मीनारायण की बैकुंठ मूर्ति में कश्मीरी तथा गुप्तकालीन तक्षणकला का अनूठा संगम है।

चंबा में भूरीसिंह नाम का एक संग्रहालय है, जहाँ चंबा घाटी की प्राचीन कला के विभिन्न पक्ष अपनी मूक, किंतु जीवंत कहानी को कहते प्रतीत होते हैं। यह संग्रहालय भारत के पाँच प्रमुख प्राचीन संग्रहालयों मे से एक है। इस संग्रहालय का निर्माण 1908 ई. में चंबा नरेश भूरीसिंह ने डच विद्वान डॉ. फोगल की प्रेरणा से किया था। इस संग्रहालय में पाँच हजार से अधिक दुर्लभ कलाकृतियाँ हैं। विश्व प्रसिद्ध चंबा रुमाल भी यहाँ की विरासत है।


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