हिंगलाजगढ़: Difference between revisions

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*परमार मूर्तिकला के विशिष्ट केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाजगढ़ [[मध्यप्रदेश]] के [[मंदसौर ज़िला|मंदसौर ज़िले]] में अवस्थित है।  
*इस स्थल से 500 से अधिक परमार कलाकृतियाँ मिली हैं।  
*इस स्थल से 500 से अधिक परमार कलाकृतियाँ मिली हैं।  
*परमार कला पूर्व-मध्यकाल की पूर्ण विकसित मूर्तिकला थी।  
*परमार कला पूर्व-मध्यकाल की पूर्ण विकसित मूर्तिकला थी।  

Revision as of 11:34, 11 January 2011

  • परमार मूर्तिकला के विशिष्ट केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाजगढ़ मध्यप्रदेश के मंदसौर ज़िले में अवस्थित है।
  • इस स्थल से 500 से अधिक परमार कलाकृतियाँ मिली हैं।
  • परमार कला पूर्व-मध्यकाल की पूर्ण विकसित मूर्तिकला थी।
  • इसमें कलाकृतियों के शरीर हल्के, भगिमाएँ आकर्षक एवं आभूषण अलंकरणों का सूक्ष्म अंकन विशिष्ट है।
  • उत्तर भारत की चंदेल एवं अन्य मूर्तिकला शैलियों के सदृश परमार शैली में भी विवरणों एवं लक्षणों की शास्त्रीयता स्पष्टतः देखी जा सकती है।
  • हिंगलाजगढ़ मुख्यतः शाक्ति पीठ था। अतः शक्ति के विविध रुपी मूर्तिशिल्प, ख़ासकर गौरी मूर्तियाँ बहुसंख्या में मिली हैं।
  • यहाँ की मूर्तियों में चेहरा गोल, ठोड़ी में उभार, भौहें, नाक एवं पलकों के अंकन में तीखापन है।
  • वस्त्राभूषण के उकेरने में स्थानीयता का पुट स्पष्टतः दिखाई देता है।
  • नारी अंकन में मालवा की नारी ही हिंगलाज के शिल्पी का विषय रही है, परंतु साथ में उसने कालिदास के कुमारसम्भव की पार्वती की रुपराशि को भी इसमें समंवित कर सहज मृदुता, लावण्य एवं भव्यता को साकार किया है।
  • अलंकृत केश-विन्यास, पारदर्शी वस्त्र और विविध प्रकार के आभूषणों के अंकन में हिंगलाजगढ़ का शिल्पी सिद्धहस्त था।


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