केतु: Difference between revisions
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*केतु की दो भुजाएँ हैं। वे अपने सिर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। उनका शरीर धूम्रवर्ण का है तथा मुख विकृत है। वे अपने एक हाथ में गदा और दूसरे में वरमुद्रा धारण किये रहते हैं तथा नित्य गीध पर समासीन हैं। | *केतु की दो भुजाएँ हैं। वे अपने सिर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। उनका शरीर धूम्रवर्ण का है तथा मुख विकृत है। वे अपने एक हाथ में गदा और दूसरे में वरमुद्रा धारण किये रहते हैं तथा नित्य गीध पर समासीन हैं। | ||
*भगवान [[विष्णु]] के चक्र से कटने पर सिर [[राहु]] कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। [[मत्स्य पुराण]] के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है। | *भगवान [[विष्णु]] के चक्र से कटने पर सिर [[राहु]] कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। [[मत्स्य पुराण]] के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है। |
Revision as of 09:00, 4 April 2010
केतु / Ketu
- केतु की दो भुजाएँ हैं। वे अपने सिर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं। उनका शरीर धूम्रवर्ण का है तथा मुख विकृत है। वे अपने एक हाथ में गदा और दूसरे में वरमुद्रा धारण किये रहते हैं तथा नित्य गीध पर समासीन हैं।
- भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है।
- भारतीय-ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है। कुछ विद्वानों के मतानुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मण्डल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छ: अंगुल है।
- यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये। इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया। केतु का वर्ण धूम्र है। कहीं-कहीं इसका कपोत वाहन भी मिलता है।
- केतु की महादशा सात वर्ष की होती है। इसके अधिदेवता चित्रकेतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु अशुभ स्थान में रहता है तो वह अनिष्टकारी हो जाता है। अनिष्टकारी केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। इसकी प्रतिकूलता से दाद, खाज तथा कुष्ठ जैसे रोग होते हैं।
- केतु की प्रसन्नता हेतु दान की जानेवाली वस्तुएँ इस प्रकार बतायी गयीं हैं-
वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत्।
शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै॥
- वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कम्बल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है। इसके लिये लहसुनिया पत्थर धारण करने तथा मृत्यंजय जप का भी विधान है। नवग्रह मण्डल में इसका प्रतीक वायव्यकोण में काला ध्वज है।
केतु की शान्ति के लिये
वैदिक मन्त्र-
'ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से। सुमुषद्भिरजायथा:॥',
पौराणिक मन्त्र-
'पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥',
बीज मन्त्र-
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:।', तथा
सामान्य मन्त्र-
ॐ कें केतवे नम:' है। इसमें किसी एक का नित्य श्रद्धापूर्वक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय रात्रि तथा कुल जप-संख्या 17000 है। हवन के लिये कुश का उपयोग करना चाहिये। विशेष परिस्थिति में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।