तेज: Difference between revisions
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'''तेज / Tej'''<br /> | '''तेज / Tej'''<br /> | ||
'''अर्थ'''1-अग्नि नामक तत्व या महाभूत। 2-अग्नि, आग्। 3-ताप, गर्मी। 4-आतप, धूप। '''उदाहरण'''- ग्रीषम तेज सहति क्यौं वेली।-सूरसागर (10/3877)5-कान्ति / चमक या ओज्। '''जैसे'''-उसके मुख पर विशेष तेज है। 6-पराक्रम। 7-आध्यात्मिक शक्ति। '''जैसे'''-महात्मा बुद्ध के तेज से अंगुलिमाल डाकू परास्त हो गया। 8-सुवर्ण, सोना।(आयुर्वेद) पित्त। '''विशेष'''-संस्कृत के योगिक शब्दों में 'तेज' के प्रातिपदिक रूप 'तेजस्' का ही प्रयोग ध्यान देने योग्य है। | |||
'''अर्थ''' | |||
1-अग्नि नामक तत्व या महाभूत। | |||
2-अग्नि, आग्। | |||
3-ताप, गर्मी। | |||
4-आतप, धूप।<br /> | |||
'''उदाहरण'''- ग्रीषम तेज सहति क्यौं वेली। - सूरसागर (10/3877)<br /> | |||
5-कान्ति / चमक या ओज्। <br /> | |||
'''जैसे'''-उसके मुख पर विशेष तेज है। <br /> | |||
6-पराक्रम। <br /> | |||
7-आध्यात्मिक शक्ति।<br /> | |||
'''जैसे''' - महात्मा बुद्ध के तेज से अंगुलिमाल डाकू परास्त हो गया। <br /> | |||
8-सुवर्ण, सोना।(आयुर्वेद) पित्त।<br /> | |||
'''विशेष'''-संस्कृत के योगिक शब्दों में 'तेज' के प्रातिपदिक रूप 'तेजस्' का ही प्रयोग ध्यान देने योग्य है। | |||
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*सूत्रकार के अनुसार रूप और स्पर्श (उष्ण) जिसमें समवाय सम्बन्ध से रहते हैं, वह द्रव्य तेज कहलाता है।<balloon title="वै. सू. 2.1.3" style=color:blue>*</balloon> | *सूत्रकार के अनुसार रूप और स्पर्श (उष्ण) जिसमें समवाय सम्बन्ध से रहते हैं, वह द्रव्य तेज कहलाता है।<balloon title="वै. सू. 2.1.3" style=color:blue>*</balloon> |
Revision as of 14:38, 8 April 2010
तेज / Tej
अर्थ
1-अग्नि नामक तत्व या महाभूत।
2-अग्नि, आग्।
3-ताप, गर्मी।
4-आतप, धूप।
उदाहरण- ग्रीषम तेज सहति क्यौं वेली। - सूरसागर (10/3877)
5-कान्ति / चमक या ओज्।
जैसे-उसके मुख पर विशेष तेज है।
6-पराक्रम।
7-आध्यात्मिक शक्ति।
जैसे - महात्मा बुद्ध के तेज से अंगुलिमाल डाकू परास्त हो गया।
8-सुवर्ण, सोना।(आयुर्वेद) पित्त।
विशेष-संस्कृत के योगिक शब्दों में 'तेज' के प्रातिपदिक रूप 'तेजस्' का ही प्रयोग ध्यान देने योग्य है।
- सूत्रकार के अनुसार रूप और स्पर्श (उष्ण) जिसमें समवाय सम्बन्ध से रहते हैं, वह द्रव्य तेज कहलाता है।<balloon title="वै. सू. 2.1.3" style=color:blue>*</balloon>
- प्रशस्तपाद के अनुसार तेज में रूप और स्पर्श नामक दो विशेष गुण तथा संख्या, परिमाण, पृथक्त्व संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व और संस्कार नामक नौ सामान्य गुण रहते हैं। इसका रूप चमकीला शुक्ल होता है।<balloon title="प्र. भा." style=color:blue>*</balloon>
- यह उष्ण ही होता है और द्रवत्व इसमें नैमित्तिक रूप से रहता है। तेज दो प्रकार का होता है, परमाणुरूप में नित्य और कार्यरूप में अनित्य। कार्यरूप तेज के परमाणुओं में शरीर, इन्द्रिय और विषय भेद से तीन प्रकार का द्रव्यारम्भकत्व (समवायिकारणत्व) माना जाता है।
- तेजस शरीर अयोनिज होते हैं जो आदित्यलोक में पाये जाते हैं और पार्थिव अवयवों के संयोग से उपभोग में समर्थ होते हैं। तेजस के परमाणुओं से उत्पन्न होने वाली इन्द्रिय चक्षु है। कार्य के समय तेज के परमाणुओं से उत्पन्न विषय (वस्तुवर्ग) चार प्रकार का होता है।<balloon title="C.F.-Sources of Energy: Bhauma=Celestial; Divya=Chemical or Terrestrial; Udarya= Abdominal; Akaraja=Minerar" style=color:blue>*</balloon>
- भौम- जो काष्ठ-इन्धन से उद्भूत, ऊर्ध्वज्वलनशील एवं पकाना, जलाना, स्वेदन आदि क्रियाओं को करने में समर्थ (अग्नि) है,
- दिव्य- जो जल से दीप्त होता है और सूर्य, विद्युत् आदि के रूप में अन्तरिक्ष में विद्यमान है,
- उदर्य- जो खाये हुए भोजन को रस आदि के रूप में परिणत करने का निमित्त (जठराग्नि) है;
- आकरज- जो खान से उत्पन्न होता है अर्थात् सुवर्ण आदि जो जल के समान अपार्थिव हैं और जलाये जाने पर भी अपने रूप को नहीं छोड़ते। पार्थिव अवयवों से संयोग के कारण सुवर्ण का रंग पीत दिखाई देता है। किन्तु वह वास्तविक नहीं है। सुवर्ण का वास्तविक रूप तो भास्वर शुक्ल है। पूर्वमीमांसकों ने सुवर्ण को पार्थिव ही माना है, तेजस नहीं। उनकी इस मान्यता को पूर्वपक्ष के रूप में रखकर इसका मानमनोहर, विश्वनाथ, अन्नंभट्ट आदि ने खण्डन किया है।<balloon title="न्या.सि.मु. पृ. 133-136" style=color:blue>*</balloon>
- सुवर्ण से संयुक्त पार्थिव अवयवों में रहने के कारण इसकी उपलब्धि सुवर्ण में भी हो जाती हैं जिस प्रकार गन्ध पृथ्वी का स्वाभाविक गुण है, उसी प्रकार उष्णस्पर् तेज का स्वाभाविक गुण है। अत: उत्तरवर्ती आचार्यों ने उष्णस्पर्शवत्ता को ही तेज का लक्षण माना है।<balloon title="उष्णस्पर्शवत्तेज:, त.सं." style=color:blue>*</balloon>
- तेज का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से होता है।