तुकाराम: Difference between revisions

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तुकाराम(जन्म्1608-मृत्यु49ई.) एक छोटे दुकानदार और बिठोवा के परम भक्त थे। उनके व्यक्तिगत धार्मिक जीवन पर उनके रचे गीतों की पंक्तियाँ पूर्णरुपेण प्रकाश डालती हैं। उनके तुकाराम की ईश्वर भक्ति, निज तुच्छता, अयोग्यता का ज्ञान, असीम, दीनता, ईश्वरविश्वास एवं सहायतार्थ ईश्वर से प्रार्थना एवं आवेदन कूट-कूट कर भरे हैं। उन्हें बिठोवा के सर्वव्यापी एवं आध्यात्मिक रूप का विश्वास था, फिर भी वे अदृश्य ईश्वर का एकीकरण मूर्ति से करते थे।  
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उनके पद्य बहुत ही उच्चकोटि के हैं। [[महाराष्ट्र]] में सम्भवत: उनका सर्वाधिक धार्मिक प्रभाव है। उनके गीतों में कोई भी दार्शनिक एवं गूढ़ धार्मिक नियम नहीं है। वे [[एकेश्वरवाद|एकेश्वरवादी]] थे। महाराष्ट्रकेसरी [[शिवाजी]] ने उन्हें अपनी राजसभा में आमंत्रित किया था, किंतु तुकाराम ने केवल कुछ [[छन्द]] लिखकर भेजते हुए त्याग का आदर्श स्थापित कर दिया। उनके भजनों को अभंग कहते हैं। इनका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ हैं।  
तुकाराम (जन्म- 1608; मृत्यु- 1650 ई.) एक छोटे दुकानदार और बिठोवा के परम भक्त थे। उनके व्यक्तिगत धार्मिक जीवन पर उनके रचे गीतों की पंक्तियाँ पूर्णरुपेण प्रकाश डालती हैं। उनके तुकाराम की ईश्वर भक्ति, निज तुच्छता, अयोग्यता का ज्ञान, असीम, दीनता, ईश्वरविश्वास एवं सहायतार्थ ईश्वर से प्रार्थना एवं आवेदन कूट-कूट कर भरे हैं। उन्हें बिठोवा के सर्वव्यापी एवं आध्यात्मिक रूप का विश्वास था, फिर भी वे अदृश्य ईश्वर का एकीकरण मूर्ति से करते थे।  
 
उनके पद्य बहुत ही उच्चकोटि के हैं। [[महाराष्ट्र]] में सम्भवत: उनका सर्वाधिक धार्मिक प्रभाव है। उनके गीतों में कोई भी दार्शनिक एवं गूढ़ धार्मिक नियम नहीं है। वे [[एकेश्वरवाद|एकेश्वरवादी]] थे। महाराष्ट्र केसरी [[शिवाजी]] ने उन्हें अपनी राजसभा में आमंत्रित किया था, किंतु तुकाराम ने केवल कुछ [[छन्द]] लिखकर भेजते हुए त्याग का आदर्श स्थापित कर दिया। उनके भजनों को अभंग कहते हैं। इनका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ हैं।  


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Revision as of 12:41, 24 March 2011

thumb|250px|तुकाराम
Tukaram
तुकाराम (जन्म- 1608; मृत्यु- 1650 ई.) एक छोटे दुकानदार और बिठोवा के परम भक्त थे। उनके व्यक्तिगत धार्मिक जीवन पर उनके रचे गीतों की पंक्तियाँ पूर्णरुपेण प्रकाश डालती हैं। उनके तुकाराम की ईश्वर भक्ति, निज तुच्छता, अयोग्यता का ज्ञान, असीम, दीनता, ईश्वरविश्वास एवं सहायतार्थ ईश्वर से प्रार्थना एवं आवेदन कूट-कूट कर भरे हैं। उन्हें बिठोवा के सर्वव्यापी एवं आध्यात्मिक रूप का विश्वास था, फिर भी वे अदृश्य ईश्वर का एकीकरण मूर्ति से करते थे।

उनके पद्य बहुत ही उच्चकोटि के हैं। महाराष्ट्र में सम्भवत: उनका सर्वाधिक धार्मिक प्रभाव है। उनके गीतों में कोई भी दार्शनिक एवं गूढ़ धार्मिक नियम नहीं है। वे एकेश्वरवादी थे। महाराष्ट्र केसरी शिवाजी ने उन्हें अपनी राजसभा में आमंत्रित किया था, किंतु तुकाराम ने केवल कुछ छन्द लिखकर भेजते हुए त्याग का आदर्श स्थापित कर दिया। उनके भजनों को अभंग कहते हैं। इनका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ