हिमाद्रि तुंग श्रृंग से: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:कविता (को हटा दिया गया हैं।)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
रुको न शूर साहसी॥ | रुको न शूर साहसी॥ | ||
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो। | अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो। | ||
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥{{cite book | last = प्रसाद | first = रत्नशंकर | title = प्रसाद ग्रंथावली | edition = 1985 | publisher = वर्द्धमान मुद्रणालय जवाहरनगर, वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 720 | chapter = खण्ड 2 }}</poem> | प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥<ref>{{cite book | last = प्रसाद | first = रत्नशंकर | title = प्रसाद ग्रंथावली | edition = 1985 | publisher = वर्द्धमान मुद्रणालय जवाहरनगर, वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 720 | chapter = खण्ड 2 }}</ref></poem> | ||
Revision as of 12:41, 19 May 2011
जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक चंद्रगुप्त के छठे दृश्य में यह वीर रस का गीत है। जो भारत में बहुत प्रसिद्ध है यह अक्सर विद्यालयों में समुह गान के रूप में गाया जाता है।
हिमाद्री तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभो समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती॥
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञा सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,
विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,
रुको न शूर साहसी॥
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥[1]
|
|
|
|
|