अंगुलिमाल: Difference between revisions

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*अंगुलिमाल का इतना भय था कि महाराजा प्रसेनजित भी उसको वश में नहीं कर पाए।  
*अंगुलिमाल का इतना भय था कि महाराजा प्रसेनजित भी उसको वश में नहीं कर पाए।  
*भगवान बुद्ध मौन धारण कर चलते रहे। कई बार रोकने पर भी वे चलते ही गए। अंगुलिमाल ने दूर से ही भगवान को आते देखा। सोचने लगा- आश्चर्य है! पचासों आदमी भी मिलकर चलते हैं तो मेरे हाथ में पड़ जाते हैं, पर यह श्रमण अकेला ही चला आ रहा है, मानो मेरा तिरस्कार ही करता आ रहा है। क्यों न इसे जान से मार दूँ।<ref name =''वेब दुनिया''>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/buddhism/0704/21/1070421181_1.htm |title=धर्म दर्शन |accessmonthday= [[28 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच. टी.एम |publisher=वेब दुनिया |language= [[हिन्दी]]}}</ref>
*भगवान बुद्ध मौन धारण कर चलते रहे। कई बार रोकने पर भी वे चलते ही गए। अंगुलिमाल ने दूर से ही भगवान को आते देखा। सोचने लगा- आश्चर्य है! पचासों आदमी भी मिलकर चलते हैं तो मेरे हाथ में पड़ जाते हैं, पर यह श्रमण अकेला ही चला आ रहा है, मानो मेरा तिरस्कार ही करता आ रहा है। क्यों न इसे जान से मार दूँ।<ref name =''वेब दुनिया''>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/buddhism/0704/21/1070421181_1.htm |title=धर्म दर्शन |accessmonthday= [[28 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच. टी.एम |publisher=वेब दुनिया |language= [[हिन्दी]]}}</ref>
*अंगुलिमाल ढाल-तलवार और तीर-धनुष लेकर वह भगवान की तरफ दौड़ पड़ा। फिर भी वह उन्हें नहीं पा सका।<ref name =''वेब दुनिया''/>  
*अंगुलिमाल ढाल-तलवार और तीर-[[धनुष]] लेकर वह भगवान की तरफ दौड़ पड़ा। फिर भी वह उन्हें नहीं पा सका।<ref name =''वेब दुनिया''/>  
*अंगुलिमाल सोचने लगा- आश्चर्य है! मैं दौड़ते हुए [[हाथी]], घोड़े, [[रथ]] को पकड़ लेता हूँ, पर मामूली चाल से चलने वाले इस श्रमण को नहीं पकड़ पा रहा हूँ! बात क्या है। वह भगवान बुद्ध से बोला- खड़ा रह श्रमण! इस पर भगवान बोले- मैं स्थित हूँ अँगुलिमाल! तू भी स्थित हो जा। अंगुलिमाल बोला- श्रमण! चलते हुए भी तू कहता है 'स्थित हूँ' और मुझ खड़े हुए को कहता है 'अस्थित'। भला यह तो बता कि तू कैसे स्थित है और मैं कैसे अस्थित?'<ref name =''वेब दुनिया''/>
*अंगुलिमाल सोचने लगा- आश्चर्य है! मैं दौड़ते हुए [[हाथी]], घोड़े, रथ को पकड़ लेता हूँ, पर मामूली चाल से चलने वाले इस श्रमण को नहीं पकड़ पा रहा हूँ! बात क्या है। वह भगवान बुद्ध से बोला- खड़ा रह श्रमण! इस पर भगवान बोले- मैं स्थित हूँ अँगुलिमाल! तू भी स्थित हो जा। अंगुलिमाल बोला- श्रमण! चलते हुए भी तू कहता है 'स्थित हूँ' और मुझ खड़े हुए को कहता है 'अस्थित'। भला यह तो बता कि तू कैसे स्थित है और मैं कैसे अस्थित?'<ref name =''वेब दुनिया''/>
*भगवान बुद्ध बोले- 'अंगुलिमाल! सारे प्राणियों के प्रति दंड छोड़ने से मैं सर्वदा स्थित हूँ। तू प्राणियों में असंयमी है। इसलिए तू अस्थित है।<ref name =''वेब दुनिया''/>
*भगवान बुद्ध बोले- 'अंगुलिमाल! सारे प्राणियों के प्रति दंड छोड़ने से मैं सर्वदा स्थित हूँ। तू प्राणियों में असंयमी है। इसलिए तू अस्थित है।<ref name =''वेब दुनिया''/>
*अंगुलिमाल पर भगवान की बातों का असर पड़ा। उसने निश्चय किया कि मैं चरकाल के पापों को छोड़ूँगा। उसने अपनी तलवार व हथियार खोह, प्रपात और नाले में फेंक दिए। <ref name =''वेब दुनिया''/>
*अंगुलिमाल पर भगवान की बातों का असर पड़ा। उसने निश्चय किया कि मैं चरकाल के पापों को छोड़ूँगा। उसने अपनी तलवार व हथियार खोह, प्रपात और नाले में फेंक दिए। <ref name =''वेब दुनिया''/>
*भगवान के चरणों की वंदना की और उनके प्रव्रज्या माँगी। 'आ भिक्षु!' कहकर भगवान ने उसे [[दीक्षा]] दी। *अंगुलिमाल पात्र-चीवर ले श्रावस्ती में भिक्षा के लिए निकला। किसी का फेंका ढेला उसके शरीर पर लगा। दूसरे का फेंका डंडा उसके शरीर पर लगा। तीसरे का फेंका ढेला कंकड़ उसके शरीर पर लगा। बहते खून, फटे सिर, टूटे पात्र, फटी संघाटी के साथ अंगुलिमाल भगवान के पास पहुँचा। उन्होंने दूर से कहा- 'ब्राह्मण! तूने कबूल कर लिया। जिस कर्मफल के लिए तुझे हज़ारों वर्ष नरक में पचना पड़ता, उसे तू इसी जन्म में भोग रहा है।<ref name =''वेब दुनिया''/>
*भगवान के चरणों की वंदना की और उनके प्रव्रज्या माँगी। 'आ भिक्षु!' कहकर भगवान ने उसे [[दीक्षा]] दी।<ref name =''वेब दुनिया''/>
*अंगुलिमाल पात्र-चीवर ले श्रावस्ती में भिक्षा के लिए निकला। किसी का फेंका ढेला उसके शरीर पर लगा। दूसरे का फेंका डंडा उसके शरीर पर लगा। तीसरे का फेंका ढेला कंकड़ उसके शरीर पर लगा। बहते खून, फटे सिर, टूटे पात्र, फटी संघाटी के साथ अंगुलिमाल भगवान के पास पहुँचा। उन्होंने दूर से कहा- 'ब्राह्मण! तूने कबूल कर लिया। जिस कर्मफल के लिए तुझे हज़ारों वर्ष नरक में पचना पड़ता, उसे तू इसी जन्म में भोग रहा है।<ref name =''वेब दुनिया''/>





Revision as of 07:33, 28 May 2011

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  • अंगुलिमाल एक बौद्ध कालीन एक दुर्दांत डाकू था जो प्रसेनजित के राज्य श्रावस्ती में निरापद जंगलों में राहगीरों को मार देता था और उनकी उंगलियों की माला बनाकर पहनता था। इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा।
  • भगवान बुद्ध एक समय उसी वन से जाने को उद्यत हुए तो अनेक पुरवासियों-श्रमणों ने उन्हें समझाया कि वे अंगुलिमाल विचरण क्षेत्र में न जांय।
  • अंगुलिमाल का इतना भय था कि महाराजा प्रसेनजित भी उसको वश में नहीं कर पाए।
  • भगवान बुद्ध मौन धारण कर चलते रहे। कई बार रोकने पर भी वे चलते ही गए। अंगुलिमाल ने दूर से ही भगवान को आते देखा। सोचने लगा- आश्चर्य है! पचासों आदमी भी मिलकर चलते हैं तो मेरे हाथ में पड़ जाते हैं, पर यह श्रमण अकेला ही चला आ रहा है, मानो मेरा तिरस्कार ही करता आ रहा है। क्यों न इसे जान से मार दूँ।[1]
  • अंगुलिमाल ढाल-तलवार और तीर-धनुष लेकर वह भगवान की तरफ दौड़ पड़ा। फिर भी वह उन्हें नहीं पा सका।Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name
  • अंगुलिमाल सोचने लगा- आश्चर्य है! मैं दौड़ते हुए हाथी, घोड़े, रथ को पकड़ लेता हूँ, पर मामूली चाल से चलने वाले इस श्रमण को नहीं पकड़ पा रहा हूँ! बात क्या है। वह भगवान बुद्ध से बोला- खड़ा रह श्रमण! इस पर भगवान बोले- मैं स्थित हूँ अँगुलिमाल! तू भी स्थित हो जा। अंगुलिमाल बोला- श्रमण! चलते हुए भी तू कहता है 'स्थित हूँ' और मुझ खड़े हुए को कहता है 'अस्थित'। भला यह तो बता कि तू कैसे स्थित है और मैं कैसे अस्थित?'Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name
  • भगवान बुद्ध बोले- 'अंगुलिमाल! सारे प्राणियों के प्रति दंड छोड़ने से मैं सर्वदा स्थित हूँ। तू प्राणियों में असंयमी है। इसलिए तू अस्थित है।Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name
  • अंगुलिमाल पर भगवान की बातों का असर पड़ा। उसने निश्चय किया कि मैं चरकाल के पापों को छोड़ूँगा। उसने अपनी तलवार व हथियार खोह, प्रपात और नाले में फेंक दिए। Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name
  • भगवान के चरणों की वंदना की और उनके प्रव्रज्या माँगी। 'आ भिक्षु!' कहकर भगवान ने उसे दीक्षा दी।Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name
  • अंगुलिमाल पात्र-चीवर ले श्रावस्ती में भिक्षा के लिए निकला। किसी का फेंका ढेला उसके शरीर पर लगा। दूसरे का फेंका डंडा उसके शरीर पर लगा। तीसरे का फेंका ढेला कंकड़ उसके शरीर पर लगा। बहते खून, फटे सिर, टूटे पात्र, फटी संघाटी के साथ अंगुलिमाल भगवान के पास पहुँचा। उन्होंने दूर से कहा- 'ब्राह्मण! तूने कबूल कर लिया। जिस कर्मफल के लिए तुझे हज़ारों वर्ष नरक में पचना पड़ता, उसे तू इसी जन्म में भोग रहा है।Cite error: The opening <ref> tag is malformed or has a bad name



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धर्म दर्शन (हिन्दी) (एच. टी.एम) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2011

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