बोधि तीर्थ मथुरा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''बोधि तीर्थ / Bodhi Tirth'''<br /> | |||
<blockquote>तत्रैत्र बोधितीर्थन्तु पितृणामपि दुर्ल्लभम् ।<br /> | <blockquote>तत्रैत्र बोधितीर्थन्तु पितृणामपि दुर्ल्लभम् ।<br /> | ||
पिण्डं दत्वा तु वसुधे! पितृलोकं स गच्छति ।।</blockquote> | पिण्डं दत्वा तु वसुधे! पितृलोकं स गच्छति ।।</blockquote> |
Revision as of 14:25, 22 April 2010
बोधि तीर्थ / Bodhi Tirth
तत्रैत्र बोधितीर्थन्तु पितृणामपि दुर्ल्लभम् ।
पिण्डं दत्वा तु वसुधे! पितृलोकं स गच्छति ।।
यहाँ भगवान् बुद्ध जीवों के स्वरूप धर्म भगवद् भक्ति का बोध कराते हैं, इसलिए इसका नाम बोधितीर्थ है। कहा जाता है कि रावण ने गुप्त रूप से यहाँ तपस्या की थी। वह त्रेता युग में एक निर्विशेष ब्रह्मज्ञानी ऋषि था। उसने स्वरचित लंकातार–सूत्र नामक ग्रन्थ में अपने निर्विशेष ब्रह्मज्ञान अथवा बौद्धवाद का परिचय दिया है। नि:शक्तिक और ब्रह्मवादी होने के कारण यह सर्वशक्तिमान भगवान् श्री राम चन्द्र जी से उनकी शक्ति श्री सीता देवी का हरण करना चाहता था, किन्तु श्रीरामचन्द्रजी ने उस निर्विशेष ब्रह्मवादी का वंश सहित बध कर दिया। यहाँ स्नान करने से पितृ-पुरुषों का सहज ही उद्धार हो जाता है और वे स्वयं पितृ लोकों को गमन कर सकते हैं। सौभाग्यवान जीव यहाँ यमुना में स्नान कर भगवद् धाम को प्राप्त होते हैं।