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झबेरचंद कालीदास मेघाणी (जन्म- [[1897]] [[सौराष्ट्र]], मृत्यु-[[1947]]) झबेरचंद गुजराती लोक-साहित्य के क्षेत्र में सर्वोपरि स्थान रखने वाले साहित्यकार थे। | |||
झबेरचंद कालीदास मेघाणी | ==जीवन परिचय== | ||
== | झबेरचंद का जन्म 1897 में सौराष्ट्र के चोटीला ग्राम में हुआ था। झबेरचंद अपने बचपन में भाटों और चारणों के मुख से लोकगीत सुनकर बड़ा हुआ। झबेरचंद का ध्यान लोक-साहित्य का संग्रह करने की ओर गया। फिर वह स्वयं लोक-गीतों की रचना की ओर भी प्रवृत्त हुए। | ||
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==साहित्य== | ==साहित्य== | ||
झबेरचंद ने आजीविका के लिए विभिन्न समाचारपत्रों में काम करते हुए मेघाणी ने विपुल साहित्य की रचना की। वे कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनी-लेखक, अनुवादक सभी रूपों में सफल हुए। उनके साहित्य का स्वर राष्ट्रवादी था। देशप्रेम, स्वतंत्रता की भावना और [[महात्मा गाँधी]] के विचारों से वे प्रभावित थे। उनकी एक कृति ‘सिघुड़ा’ को | झबेरचंद ने आजीविका के लिए विभिन्न समाचारपत्रों में काम करते हुए मेघाणी ने विपुल साहित्य की रचना की। वे कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनी-लेखक, अनुवादक सभी रूपों में सफल हुए। उनके साहित्य का स्वर राष्ट्रवादी था। देशप्रेम, स्वतंत्रता की भावना और [[महात्मा गाँधी]] के विचारों से वे प्रभावित थे। उनकी एक कृति ‘सिघुड़ा’ को अंग्रेज़ सरकार ने जब्त कर लिया था और लेखक को दो वर्ष का कारावास भी भोगना पड़ा था। इनकी रचनाओं ने [[गुजरात]] में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में बहुत योग दिया। | ||
==ग्रंथ== | ==ग्रंथ== | ||
लोक-साहित्य में झबेरचंद के मुख्य ग्रंथ हैं- सौराष्ट्रनी रसधार-5 भाग, सोरठी बहार बटिया-3 भाग, दरियापाटना बहार बटिया, रठियाली रात-4 भाग, चूंदड़ी-2 भाग, कंकावटी-2 भाग, दादाजीनी बातों, सोरटी संतों आदि। उपन्यासों में ‘समरोगण’, ‘गुजरातनी जय’ प्रमुख हैं। | लोक-साहित्य में झबेरचंद के मुख्य ग्रंथ हैं- सौराष्ट्रनी रसधार-5 भाग, सोरठी बहार बटिया-3 भाग, दरियापाटना बहार बटिया, रठियाली रात-4 भाग, चूंदड़ी-2 भाग, कंकावटी-2 भाग, दादाजीनी बातों, सोरटी संतों आदि। उपन्यासों में ‘समरोगण’, ‘गुजरातनी जय’ प्रमुख हैं। | ||
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झबेरचंद कालीदास मेघाणी (जन्म- 1897 सौराष्ट्र, मृत्यु-1947) झबेरचंद गुजराती लोक-साहित्य के क्षेत्र में सर्वोपरि स्थान रखने वाले साहित्यकार थे।
जीवन परिचय
झबेरचंद का जन्म 1897 में सौराष्ट्र के चोटीला ग्राम में हुआ था। झबेरचंद अपने बचपन में भाटों और चारणों के मुख से लोकगीत सुनकर बड़ा हुआ। झबेरचंद का ध्यान लोक-साहित्य का संग्रह करने की ओर गया। फिर वह स्वयं लोक-गीतों की रचना की ओर भी प्रवृत्त हुए।
साहित्य
झबेरचंद ने आजीविका के लिए विभिन्न समाचारपत्रों में काम करते हुए मेघाणी ने विपुल साहित्य की रचना की। वे कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनी-लेखक, अनुवादक सभी रूपों में सफल हुए। उनके साहित्य का स्वर राष्ट्रवादी था। देशप्रेम, स्वतंत्रता की भावना और महात्मा गाँधी के विचारों से वे प्रभावित थे। उनकी एक कृति ‘सिघुड़ा’ को अंग्रेज़ सरकार ने जब्त कर लिया था और लेखक को दो वर्ष का कारावास भी भोगना पड़ा था। इनकी रचनाओं ने गुजरात में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में बहुत योग दिया।
ग्रंथ
लोक-साहित्य में झबेरचंद के मुख्य ग्रंथ हैं- सौराष्ट्रनी रसधार-5 भाग, सोरठी बहार बटिया-3 भाग, दरियापाटना बहार बटिया, रठियाली रात-4 भाग, चूंदड़ी-2 भाग, कंकावटी-2 भाग, दादाजीनी बातों, सोरटी संतों आदि। उपन्यासों में ‘समरोगण’, ‘गुजरातनी जय’ प्रमुख हैं।
कविता संग्रह
कविता-संग्रहों में ‘युग वेदना’, ‘किल्लोल’, ‘वेणीनाफूल’ अधिक चर्चित हुए हैं। झबेरचंद ने राणा प्रताप, शाहजहां, घढेला आदि नाटकों और उनके कहानी-संग्रहों की भी रचना की। झबेरचंद के द्वारा रचित कुछेक आलोचना, यात्रा- विवरण, इतिहास-ग्रंथ और जीवन-चरित्र भी प्रसिद्ध हैं। इनके प्रकाशित ग्रंथों की संख्या 88 है।
निधन
झबेरचंद कालीदास मेघाणी का निधन 1947 में हुआ था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ