User:गोविन्द राम/अभ्यास पन्ना2: Difference between revisions
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*ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें। | *ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें। | ||
<poem>“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे | <poem>“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे | ||
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और” | कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और”[[ग़ालिब|... और पढ़ें]]</poem> | ||
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Revision as of 11:44, 19 July 2011
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