नायक बख़्शू: Difference between revisions

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इनमें से प्रथम का नामकरण उसके आश्रयदाता सुल्तान बहादुरशाह गुजराती के नाम पर किया गया था <ref>मानसिंह और मानकुतूहल, पृष्ठ 78</ref> । उसने जिन बहुसंख्यक ध्रुपद गीतों की रचना की थी, उनका संकलन मुग़ल सम्राट [[शाहजहाँ]] के काल में किया गया था। इस सम्बंध में श्रीचंद्रशेखर पंत ने लिखा है,- शाहजहाँ के समय में सर्वश्रेष्ठ ध्रुपदों की विशेष छानबीन हुई; और उसमें यह निर्णय किया गया कि उस समय तक के ध्रुपदकारों में नायक बख्शू के ही ध्रुपद सर्वोत्कृष्ट हैं। अत: शाहजहाँ की आज्ञानुसार नायक बख्शू के सब प्रामाणिक ध्रुपद एकत्रित किये गये। उनमें से जो एक हजार सर्वोत्तम निकले, उनका एक वृहत संकलन किया गया, और चार राग चालीस रागनियों में विभाजित करके फ़ारसी भूमिका सहित प्रकाशित किया गया। उसके 'राग-ए-हिंद',' सहस्त्र रस','एक हजार ध्रुपद', 'राग माला' इत्यादि नाम रखे गये। इस ग्रंथ की पांडुलिपियाँ इंगलैंड के इंडिया आफिस तथा बोडलियन पुस्तकालयों में मौजूद हैं।<ref>उत्तर भारतीय संगीत के ध्रुपद-रचयिता शीर्षक का लेख।</ref>' कृष्णनंद व्यास द्वारा संपादित राग कल्पद्रुम में भी बख्शू दोनों ही दुष्प्राप्य हैं; अत: बख्शू के ध्रुपदों का अपेक्षाकृत कम प्रचार है।  
इनमें से प्रथम का नामकरण उसके आश्रयदाता सुल्तान बहादुरशाह गुजराती के नाम पर किया गया था <ref>मानसिंह और मानकुतूहल, पृष्ठ 78</ref> । उसने जिन बहुसंख्यक ध्रुपद गीतों की रचना की थी, उनका संकलन मुग़ल सम्राट [[शाहजहाँ]] के काल में किया गया था। इस सम्बंध में श्रीचंद्रशेखर पंत ने लिखा है,- शाहजहाँ के समय में सर्वश्रेष्ठ ध्रुपदों की विशेष छानबीन हुई; और उसमें यह निर्णय किया गया कि उस समय तक के ध्रुपदकारों में नायक बख्शू के ही ध्रुपद सर्वोत्कृष्ट हैं। अत: शाहजहाँ की आज्ञानुसार नायक बख्शू के सब प्रामाणिक ध्रुपद एकत्रित किये गये। उनमें से जो एक हज़ार सर्वोत्तम निकले, उनका एक वृहत संकलन किया गया, और चार राग चालीस रागनियों में विभाजित करके फ़ारसी भूमिका सहित प्रकाशित किया गया। उसके 'राग-ए-हिंद',' सहस्त्र रस','एक हज़ार ध्रुपद', 'राग माला' इत्यादि नाम रखे गये। इस ग्रंथ की पांडुलिपियाँ इंगलैंड के इंडिया आफिस तथा बोडलियन पुस्तकालयों में मौजूद हैं।<ref>उत्तर भारतीय संगीत के ध्रुपद-रचयिता शीर्षक का लेख।</ref>' कृष्णनंद व्यास द्वारा संपादित राग कल्पद्रुम में भी बख्शू दोनों ही दुष्प्राप्य हैं; अत: बख्शू के ध्रुपदों का अपेक्षाकृत कम प्रचार है।  





Revision as of 14:11, 6 May 2010

नायक बख्शू / Nayak Bakshu

  • वह मानसिंह तोमर के शासन काल (सं0 1543 सं0 1576) में विद्यमान एक विख्यात गायक और संगीतज्ञ था। उसकी 'नायक' उपाधि से भी उसके प्रगाढ़ संगीत ज्ञान का परिचय मिलता है। अबुलफजल कृत 'आइना-ए-अकबरी' और फकीरूल्ला कृत 'राग दर्पण' में उसे मानसिंह तोमर का दरबारी गायक बतलाया गया है। अबुलफजल ने तानसेन के गायन की सर्वाधिक प्रशंसा करते हुए बख्शू के संबंध में लिखा है,- 'वह तानसेन के अतिरिक्त अपने समय का सबसे अधिक प्रशंसनीय गायक था।' उस ग्रंथ के संपादक की टिप्पणी है,- 'बख्शू पहिले मानसिंह तोमर के दरबार में और फिर उसके पुत्र विक्रमाजीत के अधिकार से निकल गया, तब वह विख्यात गायक कालिंजर के राजा कीरत के आश्रय में चला गया था। वहाँ से उसे गुजरात के संगीतप्रिय सुल्तान बहादुरशाह (सं0 1583 से- 1593 ने अपने दरबार में बुला लिया था। [1]
  • उसके जन्म और देहावसान का निश्चित काल अज्ञात है; किंतु ऐसा अनुमान होता है कि उसका जन्म सं0 1500 से कुछ पहिले हुआ था, और उसकी मृत्यु सं0 1600 के लगभग हुई थी। इस प्रकार उसने दीर्घायु प्राप्त की थी।)
  • बख्शू ध्रुपद शैली का प्रसिद्ध गायक और ध्रुपद गीतों का विख्यात रचयिता था। फकीरूल्ला के कथनानुसार उसने तीन नये रागों का भी आविष्कार किया था। जिनके नाम
  1. बहादुरी टोड़ी,
  2. नायकी कल्याण,
  3. नायकी काल्हड़ा हैं।

इनमें से प्रथम का नामकरण उसके आश्रयदाता सुल्तान बहादुरशाह गुजराती के नाम पर किया गया था [2] । उसने जिन बहुसंख्यक ध्रुपद गीतों की रचना की थी, उनका संकलन मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के काल में किया गया था। इस सम्बंध में श्रीचंद्रशेखर पंत ने लिखा है,- शाहजहाँ के समय में सर्वश्रेष्ठ ध्रुपदों की विशेष छानबीन हुई; और उसमें यह निर्णय किया गया कि उस समय तक के ध्रुपदकारों में नायक बख्शू के ही ध्रुपद सर्वोत्कृष्ट हैं। अत: शाहजहाँ की आज्ञानुसार नायक बख्शू के सब प्रामाणिक ध्रुपद एकत्रित किये गये। उनमें से जो एक हज़ार सर्वोत्तम निकले, उनका एक वृहत संकलन किया गया, और चार राग चालीस रागनियों में विभाजित करके फ़ारसी भूमिका सहित प्रकाशित किया गया। उसके 'राग-ए-हिंद',' सहस्त्र रस','एक हज़ार ध्रुपद', 'राग माला' इत्यादि नाम रखे गये। इस ग्रंथ की पांडुलिपियाँ इंगलैंड के इंडिया आफिस तथा बोडलियन पुस्तकालयों में मौजूद हैं।[3]' कृष्णनंद व्यास द्वारा संपादित राग कल्पद्रुम में भी बख्शू दोनों ही दुष्प्राप्य हैं; अत: बख्शू के ध्रुपदों का अपेक्षाकृत कम प्रचार है।



टीका-टिप्पणी

  1. आईने अकबरी कर्नल एच.एच जर्रेट कृत अंग्रेजी संस्करण) जिल्द 1, पृष्ठ 680 की टिप्पणी।
  2. मानसिंह और मानकुतूहल, पृष्ठ 78
  3. उत्तर भारतीय संगीत के ध्रुपद-रचयिता शीर्षक का लेख।