हिमाद्रि तुंग श्रृंग से -जयशंकर प्रसाद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 44: Line 44:
रुको न शूर साहसी॥
रुको न शूर साहसी॥
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो।  
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो।  
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥<ref> प्रसाद ग्रंथावली ॥प्रसाद वांङमय खंड 2॥ ; पृष्ठ सं.720</ref>
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥<ref>{{cite book | last = प्रसाद | first = रत्नशंकर | title = प्रसाद ग्रंथावली ॥प्रसाद वांङमय॥ | edition = 1985 | publisher = वर्द्धमान मुद्रणालय जवाहरनगर, वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 720 | chapter = खण्ड 2 }}</ref>
 
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}

Revision as of 08:06, 20 August 2011

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से -जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ

प्रयाणगीत[1]


हिमाद्री तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभो समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती॥
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञा सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,
विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,
रुको न शूर साहसी॥
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥[2]





संदर्भ
  1. प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के नाटक चंद्रगुप्त के छठे दृश्य में यह वीर रस का प्रेरणादायक गीत है। जो भारत में बहुत प्रसिद्ध है यह अक्सर विद्यालयों में समूह गान के रूप में गाया जाता है।
  2. प्रसाद, रत्नशंकर “खण्ड 2”, प्रसाद ग्रंथावली ॥प्रसाद वांङमय॥, 1985 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: वर्द्धमान मुद्रणालय जवाहरनगर, वाराणसी, पृष्ठ सं 720।