निज़ामशाही वंश: Difference between revisions

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निज़ामशाही वंश का आरम्भ [[जुन्नर]] में 1490 ई0 में [[अहमद निज़ामशाह|मलिक अहमद]] के द्वारा हुआ, जिसने तत्कालीन बहमनी शासक सुल्तान [[महमूद शाह बहमनी|महमूद]] (1482 से 1518) के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसने निज़ामशाह की उपाधि धारण की और अपनी निज़ामशाही वंश 1490 से 1637 ई0 तक राज्य करता रहा। उन्होंने 1499 में दौलताबाद के विशाल क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके पश्चात् 1637 ई0 में सम्राट् [[शाहजहाँ]] के राज्यकाल में उसे जीतकर [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] में मिला लिया गया। 1574 ई0 में इस वंश ने [[बरार]] पर भी अधिकार कर लिया था, परन्तु 1596 ई0 में उसे बरार को मुग़ल सम्राट [[अकबर]] को दे देना पड़ा।  
निज़ामशाही वंश का आरम्भ [[जुन्नर]] में 1490 ई॰ में [[अहमद निज़ामशाह|मलिक अहमद]] के द्वारा हुआ, जिसने तत्कालीन बहमनी शासक सुल्तान [[महमूद शाह बहमनी|महमूद]] (1482 से 1518) के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसने निज़ामशाह की उपाधि धारण की और अपनी निज़ामशाही वंश 1490 से 1637 ई॰ तक राज्य करता रहा। उन्होंने 1499 में दौलताबाद के विशाल क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके पश्चात् 1637 ई॰ में सम्राट् [[शाहजहाँ]] के राज्यकाल में उसे जीतकर [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] में मिला लिया गया। 1574 ई॰ में इस वंश ने [[बरार]] पर भी अधिकार कर लिया था, परन्तु 1596 ई॰ में उसे बरार को मुग़ल सम्राट [[अकबर]] को दे देना पड़ा।  


इस वंश के तृतीय शासक [[हुसेन निज़ाम शाह|हुसेनशाह]] ने [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] राज्य के विरुद्ध दक्षिण के मुसलमान राज्यों के गठबंधन में भाग लिया था और 1565 ई0 के तालीकोट के युद्ध में विजय प्राप्त करने के उपरान्त विजयनगर के लूटने में भी पूरा हाथ बँटाया। चाँदबीबी, जो मुग़लों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध हुई, निज़ामशाही वंश के सुल्तान हुसेन निज़ामशाह (1553 से 1565 ई0) की पुत्री थी। निज़ामशाही वंश का आधुनिक काल में अवशिष्ट स्मारक भद्रमहल है, जो सफेद पत्थरों से निर्मित है और अपनी जीर्णदशा में [[अहमदनगर]] में विद्यमान है।
इस वंश के तृतीय शासक [[हुसेन निज़ाम शाह|हुसेनशाह]] ने [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] राज्य के विरुद्ध दक्षिण के मुसलमान राज्यों के गठबंधन में भाग लिया था और 1565 ई॰ के तालीकोट के युद्ध में विजय प्राप्त करने के उपरान्त विजयनगर के लूटने में भी पूरा हाथ बँटाया। चाँदबीबी, जो मुग़लों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध हुई, निज़ामशाही वंश के सुल्तान हुसेन निज़ामशाह (1553 से 1565 ई॰) की पुत्री थी। निज़ामशाही वंश का आधुनिक काल में अवशिष्ट स्मारक भद्रमहल है, जो सफेद पत्थरों से निर्मित है और अपनी जीर्णदशा में [[अहमदनगर]] में विद्यमान है।
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निज़ामशाही वंश / Nizamshahi Vansh

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निज़ामशाही वंश का आरम्भ जुन्नर में 1490 ई॰ में मलिक अहमद के द्वारा हुआ, जिसने तत्कालीन बहमनी शासक सुल्तान महमूद (1482 से 1518) के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसने निज़ामशाह की उपाधि धारण की और अपनी निज़ामशाही वंश 1490 से 1637 ई॰ तक राज्य करता रहा। उन्होंने 1499 में दौलताबाद के विशाल क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके पश्चात् 1637 ई॰ में सम्राट् शाहजहाँ के राज्यकाल में उसे जीतकर मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया। 1574 ई॰ में इस वंश ने बरार पर भी अधिकार कर लिया था, परन्तु 1596 ई॰ में उसे बरार को मुग़ल सम्राट अकबर को दे देना पड़ा।

इस वंश के तृतीय शासक हुसेनशाह ने विजयनगर राज्य के विरुद्ध दक्षिण के मुसलमान राज्यों के गठबंधन में भाग लिया था और 1565 ई॰ के तालीकोट के युद्ध में विजय प्राप्त करने के उपरान्त विजयनगर के लूटने में भी पूरा हाथ बँटाया। चाँदबीबी, जो मुग़लों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध हुई, निज़ामशाही वंश के सुल्तान हुसेन निज़ामशाह (1553 से 1565 ई॰) की पुत्री थी। निज़ामशाही वंश का आधुनिक काल में अवशिष्ट स्मारक भद्रमहल है, जो सफेद पत्थरों से निर्मित है और अपनी जीर्णदशा में अहमदनगर में विद्यमान है।