कामना -अशोक चक्रधर: Difference between revisions

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बस तेरा नाम जपूंगा
बस तेरा नाम जपूंगा
और ढोऊंगा
और ढोऊंगा
फालतू जीवन का साक्षात बोझ
फ़ालतू जीवन का साक्षात बोझ
हर पल तीसों रोज़।
हर पल तीसों रोज़।



Revision as of 12:23, 4 September 2011

कामना -अशोक चक्रधर
कवि अशोक चक्रधर
जन्म 8 फ़रवरी, 1951
जन्म स्थान खुर्जा, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ बूढ़े बच्चे, भोले भाले, तमाशा, बोल-गप्पे, मंच मचान, कुछ कर न चम्पू , अपाहिज कौन , मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया
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अशोक चक्रधर की रचनाएँ


सुदूर कामना
सारी ऊर्जाएं
सारी क्षमताएं खोने पर,
यानि कि
बहुत बहुत
बहुत बूढ़ा होने पर,
एक दिन चाहूंगा
कि तू मर जाए।
(इसलिए नहीं बताया
कि तू डर जाए।)

हां उस दिन
अपने हाथों से
तेरा संस्कार करुंगा,
उसके ठीक एक महीने बाद
मैं मरूंगा।
उस दिन मैं
तुझ मरी हुई का
सौंदर्य देखूंगा,
तेरे स्थाई मौन से सुनूंगा।

क़रीब,
और क़रीब जाते हुए
पहले मस्तक
और अंतिम तौर पर
चरण चूमूंगा।
अपनी बुढ़िया की
झुर्रियों के साथ-साथ
उसकी एक-एक ख़ूबी गिनूंगा
उंगलियों से।
झुर्रियों से ज़्यादा
ख़ूबियां होंगी
और फिर गिनते-गिनते
गिनते-गिनते
उंगलियां कांपने लगेंगी
अंगूठा थक जाएगा।

फिर मन-मन में गिनूंगा
पूरे महीने गिनता रहूंगा
बहुत कम सोउंगा,
और छिपकर नहीं
अपने बेटे-बेटी
पोते-पोतियों के सामने
आंसुओं से रोऊंगा।

एक महीना
हालांकि ज़्यादा है
पर मरना चाहूंगा
एक महीने ही बाद,
और उस दौरान
ताज़ा करूंगा
तेरी एक-एक याद।

आस्तिक हो जाऊंगा
एक महीने के लिए
बस तेरा नाम जपूंगा
और ढोऊंगा
फ़ालतू जीवन का साक्षात बोझ
हर पल तीसों रोज़।

इन तीस दिनों में
काग़ज़ नहीं छूऊंगा
क़लम नहीं छूऊंगा
अख़बार नहीं पढूंगा
संगीत नहीं सुनूंगा
बस अपने भीतर
तुझी को गुंजाउंगा
और तीसवीं रात के
गहन सन्नाटे में
खटाक से मर जाऊंगा।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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