मेहरगढ़: Difference between revisions

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इस स्थान पर लोग [[गेहूँ]], [[जौ]], एवं [[खजूर]] पैदा करते थे और भेड़, बकरियाँ तथा मवेशी पालते थे। यहाँ के लोग कच्चे मकानों में रहते थे।  
इस स्थान पर लोग [[गेहूँ]], [[जौ]], एवं [[खजूर]] पैदा करते थे और भेड़, बकरियाँ तथा मवेशी पालते थे। यहाँ के लोग कच्चे मकानों में रहते थे।  


कालांतर में यहाँ, [[हड़प्पा सभ्यता|हडप्पा]] के शहरीकरण के पूर्ववर्ती काल में, मेहरगढ़ के निवासियों ने एक समय उपनगर बसाया था। वे पत्थरों की कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। वे एक कीमती पत्थर 'लाजवर्द मणि' का प्रयोग करते थे, जो केवल [[एशिया|मध्य एशिया]] के बदख़्शां में पाया जाता है। बहुत सी मोहरों एवं ठप्पों का भी पता चला है। मिट्टी के बर्तनों के डिज़ायनों, मिट्टी की बनी मूर्तियों, तांबे और पत्थर की वस्तुओं से पता चलता है कि इन लोगों का [[ईरान]] के निकटवर्ती नगरों के साथ घनिष्ट सम्बंधा था।   
कालांतर में यहाँ, [[हड़प्पा सभ्यता|हडप्पा]] के शहरीकरण के पूर्ववर्ती काल में, मेहरगढ़ के निवासियों ने एक समय उपनगर बसाया था। वे पत्थरों की कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। वे एक कीमती पत्थर 'लाजवर्द मणि' का प्रयोग करते थे, जो केवल [[एशिया|मध्य एशिया]] के बदख़्शां में पाया जाता है। बहुत सी मोहरों एवं ठप्पों का भी पता चला है। मिट्टी के बर्तनों के डिज़ायनों, मिट्टी की बनी मूर्तियों, तांबे और पत्थर की वस्तुओं से पता चलता है कि इन लोगों का [[ईरान]] के निकटवर्ती नगरों के साथ घनिष्ट सम्बंध था।   





Revision as of 06:30, 6 September 2011

मेहरगढ़ उस स्थान पर स्थित है, जहाँ सिंधु नदी के कछारी मैदान और वर्तमान पाकिस्तान और ईरान के सीमांत प्रदेश के पठार मिलते हैं। इस प्रकार मेहरगढ़ पाक़िस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 'बोलन दर्रे' के निकट स्थित है। यहाँ से कृषक समुदाय के उद्भव के भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। यह स्थान अस्थायी मानव आवास के रूप प्रयुक्त हुआ था तथा सम्भवत: सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. में यहाँ एक मानव बस्ती अस्तित्व में आ गयी थी।

फसल

इस स्थान पर लोग गेहूँ, जौ, एवं खजूर पैदा करते थे और भेड़, बकरियाँ तथा मवेशी पालते थे। यहाँ के लोग कच्चे मकानों में रहते थे।

कालांतर में यहाँ, हडप्पा के शहरीकरण के पूर्ववर्ती काल में, मेहरगढ़ के निवासियों ने एक समय उपनगर बसाया था। वे पत्थरों की कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। वे एक कीमती पत्थर 'लाजवर्द मणि' का प्रयोग करते थे, जो केवल मध्य एशिया के बदख़्शां में पाया जाता है। बहुत सी मोहरों एवं ठप्पों का भी पता चला है। मिट्टी के बर्तनों के डिज़ायनों, मिट्टी की बनी मूर्तियों, तांबे और पत्थर की वस्तुओं से पता चलता है कि इन लोगों का ईरान के निकटवर्ती नगरों के साथ घनिष्ट सम्बंध था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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