तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-2: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:44, 13 October 2011
- तैत्तिरीयोपनिषद के ब्रह्मानन्दवल्ली का यह दूसरा अनुवाक है।
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- इस अनुवाक में मनुष्य को पक्षी के समकक्ष मानकर पंचकोशों का वर्णन किया गया है। यहाँ 'अन्नमय कोश' का वर्णन है।
- सभी प्राणी अन्न से जन्म लेते हैं, अन्न से ही जीवित रहते हैं और अन्त में अन्न में ही समा जाते हैं। इसीलिए 'अन्न' को सभी तत्त्वों में श्रेष्ठ कहा गया है।
- अन्न रस से युक्त इस शरीर में प्राण-रूप आत्मा का वास है।
- उस प्राणगत देह का प्राण ही उसका सिर है, व्यान दाहिना पंख, अपान बायां पंख, आकाश मध्य भाग और पृथ्वी उसकी पूंछ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली |
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