बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-1 ब्राह्मण-5: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{बृहदारण्यकोपनिषद}}") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य") |
||
Line 29: | Line 29: | ||
[[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]] | [[Category:बृहदारण्यकोपनिषद]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:उपनिषद]] | [[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 13:45, 13 October 2011
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय प्रथम का यह पांचवाँ ब्राह्मण है।
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
- परमापिता ने सृष्टि का सृजन करके क्षुधा-तृप्ति के लिए चार प्रकार के अन्नों का सृजन किया।
- उनमें एक प्रकार का अन्न सभी के लिए, दूसरे प्रकार का अन्न देवताओं के लिए, तीसरे प्रकार का अन्न अपने लिए तथा चौथे प्रकार का पशुओं के लिए वितरित कर दिया।
- धरती से उत्पन्न अन्न सभी के लिए है। उसे सभी को समान रूप से उपभोग करने का अधिकार है।
- हवन द्वारा दया जाने अन्न देवताओं के लिए है।
- पशुओं को दिया जाने वाला खाद्यान्न दूध उत्पन्न करता है।
- यह दूध सभी के पीने योग्य हे।
- शीघ्र उत्पन्न हुए बचच् को स्तनपान से दूध ही दिया जाता है।
- कहा गया कि एक वर्ष तक दूध से निरन्तर अग्निहोत्र करने पर मृत्यु भी वश में हो जाती हे।
- उस पुरुष ने तीन अन्नों का चयन अपने लिए किया।
- ये तीन अन्न-'मन, 'वाणी' और 'प्राण' हैं वाणी द्वारा पृथ्वीलोक को, मन द्वारा अन्तरिक्षलोक को और प्राण द्वारा स्वर्गलोक को पाया जा सकता है।
- वाणी ॠग्वेद, मन यजुर्वेद और प्राण सामवेद है।
- जो कुछ भी जानने योग्य है, वह मन का स्वरूप है।
- वाणी ज्ञान-स्वरूप होकर जीवात्मा की रक्षा करती है और जो कुछ अनजाना है, वह प्राण-स्वरूप है।
- इस विश्व में जो कुछ भी स्वाध्याय या ज्ञान है, वह सब 'ब्रह्म' से ही एकीकृत है।
- वस्तुत: यह सूर्य निश्चित रूप से प्राण से ही उदित होता है और प्राण में ही समा जाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख