रक्त ऑक्सीक्षीणता: Difference between revisions
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Revision as of 09:05, 31 December 2011
(अंग्रेज़ी:Anoxaemia) रुधिर का एक गुण यह है कि वह ऑक्सीजन को अवशोषित कर, विविध अंगों और ऊतकों तक पहुँचाता है, जहाँ उसका उपयोग होता है। इस प्रकार जीवों के रुधिर में अवशोषित ऑक्सीजन की थोड़ी मात्रा रहती ही है। किन्हीं स्थितियों में रक्त ऑक्सीजन का औसत परिमाण पर्याप्त कम हो सकता है, इस अवस्था को रुधिर ऑक्सीक्षीणता कहते है। इस अवस्था में रुधिर में ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है। जब ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है तब धमनीय रुधिर में ऑक्सीजन की संतृप्ति भी निम्न पड़ जाती है। जब भी किन्हीं कारणों से फेफड़ों में रुधिर का उचित ऑक्सीजनीकरण अवरुद्ध हो जाता है, तो यह अवस्था उत्पन्न होती है। अधोलिखित परिस्थितियाँ इसे उत्पन्न करती हैं:
- साँस लेने वाली हवा में ऑक्सीजन का न्यूनीकृत दबाव
जब मनुष्य ऊपर की ओर उड़ता है तब ऑक्सीजन का दबाव क्रमश: कम होता जाता है और ऊँचाई की ऐसी स्थिति आ सकती है जब वह समुचित मात्रा में ऑक्सीजन न प्राप्त कर सके। इसलिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए ऑक्सीजन के पात्र साथ ले जाए जाते हैं।
- फेफड़ों के रोग जिनसे गैसीय विनिमय निरुद्ध हो जाता है
कुछ रोगों से ग्रस्त मनुष्य, फुप्फुस ऊतकों की कमी के कारण, निश्वसित ऑक्सीजन को अवशोषित नहीं कर पाता, जिससे ऑक्सीजन के सामान्य परिमाण से रुधिर संतृप्त नहीं होता। इस क्षति की पूर्ति के लिए श्वसन दर की संख्या बढ़ जाती है।
- स्पष्ट अंडाकार रध्रं के कारण जन्मजात हृद्रोग
इसमें बाएँ हृदय का रुधिर दाएँ हृदय के रुधिर से मिश्रित हो जाता है और इस प्रकार ऑक्सीजनीकृत और अनाक्सीजनीकृत रुधिर मिश्रित हो जाता है, जिससे फेफड़ों में उचित परिसंचरण तथा संतृप्ति नहीं हो पाती और यह दशा उत्पन्न होती है।
रुधिर में ऑक्सीजन की कमी
जब भी रुधिर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, तो ऊतकों को ऑक्सीजन की प्राप्ति कम होने लगती है। ऐसी स्थिति में ऊतकक्षति होती है। केंद्रीय तंत्रिकातंत्र और वाहिकातंत्र के ऊतक इस प्रकार की क्षति के लिए सर्वाधिक ग्रहणशील होते हैं। जब भी केशिकाओं की अंत:कलाएँ क्षतिग्रस्त होती है, तो उनमें से तरल बाहर की ओर रिस पड़ता है और परिसंचरण से तरल की हानि होती है। रक्त ऑक्सीक्षीणता में शरीर पर प्रभावों की तीव्रता (अ) रक्त ऑक्सीक्षीणता के आक्रमण की आकस्मिकता, (ब) उसी मात्रा, (स) अवधि तथा (द) शरीर की सामान्य शरीरक्रियात्मक स्थिति से प्रभावित होती है।
हृदय पर रक्त ऑक्सीक्षीणता का प्रभाव
यदि रक्त ऑक्सीक्षीणता बहुत उग्र रूप न धारण करे, या अधिक समय तक बनी न रहे, तो हृदीय उत्पादन बहुत बढ़ जाता है। यदि स्थिति अधिक समय तक बनी रहती है या उग्र हो जाती है, तो हृत्पेशीस्तर पर हानिकारक प्रभाव के कारण हृदीय उत्पादन क्रमश: घटता जाता है।
उपचार
चूँकि यह दशा ऑक्सीजन की कमी के कारण होती है, अत: ऑक्सीजन-चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। ऑक्सीजन प्रयोग करने के पूर्व यह जान लेना बहुत आवश्यक है कि रोगी ऑक्सीजन प्रयोग के उपयुक्त है या नहीं। यह कुछ तथ्यों पर निर्भर करता है। यदि अंडाकार रंध्र या फेफड़े में पूर्णत: अवातिन भाग उपस्थित है, तो ऑक्सीजन अंत:श्वसन से रोगी को अभीष्ट लाभ नहीं होता। अंडाकार रुधिर की उपस्थिति के कारण पार्श्वपथित रुधिर की क्षतिपूर्ति के लिए स्वस्थ और सुवातित कूपिका की पूर्ति करने वाला रुधिर अतिरिक्त ऑक्सीजन का महत्त्वपूर्ण परिमाण अवशोषित न करेगा।
ब्रोंको या पिंडकीय फुप्फुसार्ति में फेफड़े का भाग काम नहीं करता और फलत: रक्तऑक्सीक्षीणता हो जाती है। बातस्फीति, फुप्फुसशोथ और गैस विषाक्तता में ऑक्सीजन प्रयोग बहुत सफल सिद्ध होता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण फुप्फुस उपकला की प्रवेश्यता तरल के प्रति बढ़ जाती है और परिमाण स्वरूप शोथ हो जाता है। अत: शोथ रक्त ऑक्सीक्षीणता प्रेरित करता है और रक्त ऑक्सीक्षीणता से शोथ को बढ़ावा मिलता है। यह दुश्चक्र ऑक्सीजन के प्रयोग से तोड़ा जा सकता है।
द्रुत और उथले श्वसन के कारण उत्पन्न रक्त ऑक्सीक्षीणता में ऑक्सीजन प्रयोग से राहत मिलती है, क्योंकि उससे अंशत: संवातित एल्वियोली का ऑक्सीजन तनाव बढ़ जाता है। उथला श्वसन कुछ काल तक बना रह सकता है, क्योंकि वह मुख्यत: तंत्रिका के सिरों पर कार्य करने वाले फेफड़े के अंदर की स्थानीय क्रियाओं के कारण होता है न कि रक्त ऑक्सीक्षीणता के कारण। उथला श्वसन चूँकि ऑक्सीजन की कमी से और भी गंभीर रूप लेता है, अत: इसमें ऑक्सीजन उपचार लाभप्रद सिद्ध होता है। अत: संक्षेप में, रक्त ऑक्सीक्षीणता वह दशा है जिसमें रुधिर में स्थित ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है।
यह फेफड़े के रुधिर के उचित ऑक्सीजनीकरण में बाधा देने वाली सभी अवस्थाओं में उत्पन्न होता है। यह दशा प्राय: सभी स्थितियों में ऑक्सीजन प्रयोग से ठीक हो सकती है, यदि कोई जैव कारण उपस्थित न हो। शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न रूपों में प्रभावित होते हैं। प्रारंभ में हृदय का त्वरण होता है, परंतु इस दशा के बने रहने पर हृदय सुस्त हो जाता है और हृदयी निकास घट जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- विश्व कोश (खण्ड 10), पेज न. 17 रामचंद्र शुक्ल
- गेज़ेल (1925): दि केमिकल रेगुलेशन ऑव् रेस्पिरेशन फ़िजियोलॉजी;
- ग्रे (1949): पल्मोनरी वेंटिलेशन ऐंड इट्स फ़िजियोलॉजिकल रेगूलेशन;
- ह्विटरिज (1950): मल्ठिपुल एंबॉलिज़्म ऑव् लंग ऐंड रैपिड शैलो ब्रीदिंग;
- सिंपोज़ियम (1951): केमोरिसेप्टर्स ऐंड केमोसेप्टिव रिऐक्शन्स।