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'''उदयगिरि की गुफ़ाएँ'''
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बेसनगर या प्राचीन [[विदिशा]] (भूतपूर्व [[ग्वालियर]] सियासत) के निकट उदयगिरि विदिशा नगरी ही का उपनगर था। एक अन्य गुफ़ा में गुप्त संवत् 425-426 ई॰ में उत्कीर्ण कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल का एक अभिलेख है। इसमें शंकर नामक किसी व्यक्ति द्वारा गुफ़ा के प्रवेश-द्वार पर [[जैन]] तीर्थ कर पार्श्वनाथ की मूर्ति के प्रतिष्ठापित किए जाने का उल्लेख है- यह लेख इस प्रकार है- ''' 'नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमाना राज्ये कुलस्याधिविवर्धमाने षड्भिर्य्युतैः वर्षशतेथ मासे सुकार्तिके बहुल दिनेथ पंचमे गुहामुखे स्फटविकतोत्कटामिमां जितोद्विषो जिनवर पार्श्व-संज्ञिका जिनाकृर्ति शमदमवानचीकरत् आचार्य भद्रान्वय भूषणस्य शिष्योह्मसावार्य कुलोद्गतस्य आचार्य गोशर्म्ममुनेस्तुसुतस्तु पद्मावतावश्वपतेब्भटस्य परैरजयस्य सिपुघ्न मानिनस्य संघिल स्येत्यभि विश्रृतोभुवि स्वसंज्ञया शंकरनाम शब्दितो विधानयुक्तं यतिमार्गमास्थितः स उत्तराणां सदंशे कुरुणां उदग्दिशादेशवरे प्रसूतः क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तद्पाससर्ज्ज।' '''
बेसनगर या प्राचीन [[विदिशा]] (भूतपूर्व [[ग्वालियर]] सियासत) के निकट उदयगिरि विदिशा नगरी ही का उपनगर था। एक अन्य गुफ़ा में गुप्त संवत् 425-426 ई॰ में उत्कीर्ण कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल का एक अभिलेख है। इसमें शंकर नामक किसी व्यक्ति द्वारा गुफ़ा के प्रवेश-द्वार पर [[जैन]] तीर्थ कर पार्श्वनाथ की मूर्ति के प्रतिष्ठापित किए जाने का उल्लेख है- यह लेख इस प्रकार है- '' 'नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमाना राज्ये कुलस्याधिविवर्धमाने षड्भिर्य्युतैः वर्षशतेथ मासे सुकार्तिके बहुल दिनेथ पंचमे गुहामुखे स्फटविकतोत्कटामिमां जितोद्विषो जिनवर पार्श्व-संज्ञिका जिनाकृर्ति शमदमवानचीकरत् आचार्य भद्रान्वय भूषणस्य शिष्योह्मसावार्य कुलोद्गतस्य आचार्य गोशर्म्ममुनेस्तुसुतस्तु पद्मावतावश्वपतेब्भटस्य परैरजयस्य सिपुघ्न मानिनस्य संघिल स्येत्यभि विश्रृतोभुवि स्वसंज्ञया शंकरनाम शब्दितो विधानयुक्तं यतिमार्गमास्थितः स उत्तराणां सदंशे कुरुणां उदग्दिशादेशवरे प्रसूतः क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तद्पाससर्ज्ज।' ''


==गुफ़ायें==
==गुफ़ायें==

Revision as of 10:18, 22 May 2010

उदयगिरि की गुफ़ाएँ

बेसनगर या प्राचीन विदिशा (भूतपूर्व ग्वालियर सियासत) के निकट उदयगिरि विदिशा नगरी ही का उपनगर था। एक अन्य गुफ़ा में गुप्त संवत् 425-426 ई॰ में उत्कीर्ण कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल का एक अभिलेख है। इसमें शंकर नामक किसी व्यक्ति द्वारा गुफ़ा के प्रवेश-द्वार पर जैन तीर्थ कर पार्श्वनाथ की मूर्ति के प्रतिष्ठापित किए जाने का उल्लेख है- यह लेख इस प्रकार है- 'नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमाना राज्ये कुलस्याधिविवर्धमाने षड्भिर्य्युतैः वर्षशतेथ मासे सुकार्तिके बहुल दिनेथ पंचमे गुहामुखे स्फटविकतोत्कटामिमां जितोद्विषो जिनवर पार्श्व-संज्ञिका जिनाकृर्ति शमदमवानचीकरत् आचार्य भद्रान्वय भूषणस्य शिष्योह्मसावार्य कुलोद्गतस्य आचार्य गोशर्म्ममुनेस्तुसुतस्तु पद्मावतावश्वपतेब्भटस्य परैरजयस्य सिपुघ्न मानिनस्य संघिल स्येत्यभि विश्रृतोभुवि स्वसंज्ञया शंकरनाम शब्दितो विधानयुक्तं यतिमार्गमास्थितः स उत्तराणां सदंशे कुरुणां उदग्दिशादेशवरे प्रसूतः क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तद्पाससर्ज्ज।'

गुफ़ायें

पहाड़ियों से अन्दर बीस गुफ़ाएं हैं जो हिंदू और जैन-मूर्तिकारी के लिए प्रख्यात हैं। मूर्तियां विभिन्न पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध हैं और अधिकांश गुप्तकालीन (चौथी-पाँचवी शती ई॰) हैं। यहाँ पाये जाने वाले स्थानीय पत्थर के कारण इन गुफ़ाओं में से अधिकांश गुफ़ाएँ मूर्ति- विहीन गुफाएँ रह गई हैं। खुदाई का काम आसान था क्योंकि यह पत्थर नरम थे, लेकिन साथ- ही- साथ यह मौसमी प्रभावों को झेलने के लिए उपयुक्त नहीं है।

गुफ़ा सं॰ 1

इस गुफ़ा का नाम सूरज गुफ़ा है। इस गुफ़ा में अठखेलियाँ करती वेत्रवती, साँची स्तूप तथा रायसेन के किले की शिलाएँ स्पष्ट दिखाई

पड़ती है। इस गुफ़ा में 7 फीट लंबे और 6 फीट चौड़े कक्ष है।

गुफ़ा सं॰ 2

यह गुफ़ा 7 फीट 11 इंच लंबी और 6 फीट 1.5 इंच चौड़ी एक कक्ष की भांति है, जिसका अब केवल निशान रह गया है।

गुफ़ा सं॰ 3

यह गुफ़ा भीतर से 86 फीट चौड़ी और 6 फीट 3 इंच गहराई है। इसमें बची 5 मूर्तियों में से कुछ मूर्तियाँ चर्तुमुखी है व वनमाला धारण किये हुए है।

गुफ़ा सं॰ 4

इस गुफ़ा में शिवलिंग की प्रमिमा है। इसके प्रवेश द्वार पर एक मनुष्य वीणावादन में व्यस्त दिखाया गंया है जिसके करण इस गुफ़ा को 'बीन की गुफ़ा' कहते हैं। यह गुफा का 13 फीट 11 इंच लंबी और 11 फीट 8 इंच चौड़ी है।

गुफ़ा सं॰ 5

इस गुफ़ा को वाराह गुफ़ा कहते है क्योंकि इसमे बराहावतार की सुन्दर झांकी है। इसमें वराह भगवान् को नर और वराह रूप में अंकित किया है। उनका बायाँ पाँव नागराजा के सिर पर दिखलाया गया है जो संभवतः गुप्तकाल में गुप्त-सम्राटों द्वारा किए गए नामशक्ति के परिह्रास का प्रतीक है। यह गुफ़ा 22 फीट लंबी और 12 फीट 8 इंच ऊँची है।

गुफ़ा सं॰ 6

इस गुफ़ा के दरवाजे के बाहर दो द्वारपाल, दो विष्णु, एक गणेश और एक महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति बनाई हुई है। ये भव्य मूर्तिया भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

गुफ़ा सं॰ 7

इस गुफा में अब सिर्फ़ दो द्वारपालों के चिंह अवशिष्ट हैं, जो गुफ़ा स॰ 6 की तरहा ही बनाये गये हैं। प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि यह एक शैव गुफा है।

गुफ़ा सं॰ 8

इस गुफा का कुछ भी नाम और निशान नहीं बचा है।

गुफ़ा सं॰ 9, 10 और 11

यह तीनो वैष्णव गुफाएँ हैं, जिनमें सिर्फ़ विष्णु के अवशेष रह गये हैं।

गुफ़ा सं॰ 12

यह गुफ़ा भी वैष्णव गुफा है, इसमें भी विष्णु की मूर्ति बनाई गई थी और बाहर दो द्वारपाल भी बनाये गये थे। जिनका अब कोई नाम और निशान नहीं बचा।

गुफ़ा सं॰ 13

इस दालाननुमा गुफ़ा का मुख उत्तर की ओर है। सके सामने से उदयगिरि पहाड़ी के ऊपर जाने का प्रमुख मार्ग है। यह गुफा शेषशायी विष्णु की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मूर्ति की लंबाई 12 फीट है। मूर्ति के सिर पर फारसी मुकुट, गले में हार, भुजबंध व हाथों में कंगन हैं। वैजयंतीमाला घुटनों तक लंबी है। गुफा के आस- पास व सामने वाली चट्टान पर शंख लिपि खुदी हुई है, जो संसार की प्राचीनतम लिपियों में से एक मानी जाती है।

गुफ़ा सं॰ 14

इस गुफा का भी कोई नाम और निशान नहीं बचा है।

गुफ़ा सं॰ 15 और 16

इन गुफ़ाओं की मूर्तियाँ नष्ट कर दी गई हैं इसलिए यह गुफाएँ खाली हैं।

गुफ़ा सं॰ 17

इसमें भी गुफ़ा सं॰ 6 की तरहा दोनों तरफ द्वारपाल हैं, परंतु गणेश की मूर्ति पर निखार आ गया है। मूर्ति के सिर पर मुकुट बना हुआ है। इसके अलावा इसमें महिषासुरमर्दिनी की भी एक मूर्ति उत्कीर्ण की गई हैं।

गुफ़ा सं॰ 18

यह गुफ़ा अब खाली रह गई है क्योंकि इसकी सरी मुर्तिया तोड़ दी गई है।

गुफ़ा सं॰ 19

यह गुफ़ा उदयगिरि की गुफाओं में सबसे बड़ी है। इसके अन्दर एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा स्थानीय लोग आज भी करते हैं। ऊपर भीतरी छत पर कमल की आकृति बनी हुई है। बाहर दोनों ओर द्वारपालों की दो बड़ी- बड़ी क्षरणयुक्त मूर्तियाँ हैं। ऊपर की तरफ एक सुंदर समुद्र मंथन का भी दृश्य है। बीच में मंदराचल को वासुकी नाग के साथ बाँधकर एक ओर देवगण व दूसरी ओर असुरगण मंथन कर रहे हैं। द्वार के चारों तरफ अनेक प्रकार की लताएँ, बेलें, कीर्तिमुख व आकृतियाँ खुदी हुई हैं।

गुफ़ा सं॰ 20

इस गुफ़ा में चार मूर्तियाँ हैं, जो कमलासनों पर विराजमान हैं। इसके चारों ओर आभामण्डल व ऊपर छत्र हैं। इसमें तीन मूर्तियों में नीचे की तरफ, जो चक्र है उनके दोनों ओर दो सिंह आमने- सामने मुँह करे हुए बैठे हैं।