मोक्ष तीर्थ, द्वारका: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 8: Line 8:


द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण का राजप्रासाद चार योजन लंबा-चौड़ा था, वह प्रासादों तथा क्रीड़ापर्वतों से संपन्न था। उसे साक्षात विश्वकर्मा ने बनाया था <ref>('साक्षाद् भगवतों वेश्म विहिंत विश्वकर्मणा, ददृशुर्देवदेवस्य-चतुर्योजनमायतम्, तावदेव च विस्तीर्णमप्रेमयं महाधनै:, प्रासादवरसंपन्नं युक्तं जगति पर्वतै:')</ref>। श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात समग्र द्वारका, श्रीकृष्ण का भवन छोड़कर समुद्रसात हो गयी थी जैसा कि [[विष्णु पुराण]] के इस उल्लेख से सिद्ध होता है-'प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि: वासुदेवगृहं त्वेकं न प्लावयति सागर:,<balloon title="विष्णु0 5,38,9" style="color:blue">*</balloon>।
द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण का राजप्रासाद चार योजन लंबा-चौड़ा था, वह प्रासादों तथा क्रीड़ापर्वतों से संपन्न था। उसे साक्षात विश्वकर्मा ने बनाया था <ref>('साक्षाद् भगवतों वेश्म विहिंत विश्वकर्मणा, ददृशुर्देवदेवस्य-चतुर्योजनमायतम्, तावदेव च विस्तीर्णमप्रेमयं महाधनै:, प्रासादवरसंपन्नं युक्तं जगति पर्वतै:')</ref>। श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात समग्र द्वारका, श्रीकृष्ण का भवन छोड़कर समुद्रसात हो गयी थी जैसा कि [[विष्णु पुराण]] के इस उल्लेख से सिद्ध होता है-'प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि: वासुदेवगृहं त्वेकं न प्लावयति सागर:,<balloon title="विष्णु0 5,38,9" style="color:blue">*</balloon>।
==टीका-टिप्पणी==                                                     
<references/> 
[[Category:गुजरात_के_धार्मिक_स्थल]]
[[Category:गुजरात_के_पर्यटन_स्थल]]
[[Category:पर्यटन_कोश]]
__INDEX__

Revision as of 09:39, 25 May 2010

मोक्ष तीर्थ

[[चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|thumb|नंगेश्वर महादेव, द्वारका, गुजरात
Nageshwar Mahadev, Dwarka, Gujarat]] हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है । पूर्णावतार श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने इस नगरी का निर्माण किया था । श्रीकृष्ण ने मथुरा से सब यादवों को लाकर द्वारका में बसाया था।

महाभारत में द्वारका का विस्तृत वर्णन है जिसका कुछ अंश इस प्रकार है- "द्वारका के मुख्य द्वार का नाम वर्धमान था <balloon title="('वर्धमानपुरद्वारमाससाद पुरोत्तमम्' महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। नगरी के सब ओर सुन्दर उद्यानों में रमणीय वृक्ष शोभायमान थे, जिनमें नाना प्रकार के फल फूल लगे थे। यहाँ के विशाल भवन सूर्य और चंद्रमा के समान प्रकाशवान तथा मेरू के समान उच्च थे। नगरी के चतुर्दिक चौड़ी खाइयां थीं जो गंगा और सिंधु के समान जान पड़ती थीं और जिनके जल में कमल के पुष्प खिले थे तथा हंस आदि पक्षी क्रीड़ा करते थे <balloon title="('पद्यषंडाकुलाभिश्च हंससेवितवारिभि: गंगासिंधुप्रकाशाभि: परिखाभिरंलंकृता महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला एक परकोटा नगरी को सुशोभित करता था जिससे वह श्वेत मेघों से घिरे हुए आकाश के समान दिखाई देती थी <balloon title="('प्राकारेणार्कवर्णेन पांडरेण विराजिता, वियन् मूर्घिनिविष्टेन द्योरिवाभ्रपरिच्छदा' महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। रमणीय द्वारकापुरी की पूर्वदिशा में महाकाय रैवतक नामक पर्वत (वर्तमान गिरनार) उसके आभूषण के समान अपने शिखरों सहित सुशोभित होता था <balloon title="('भाति रैवतक: शैलो रम्यसनुर्महाजिर:, पूर्वस्यां दिशिरम्यायां द्वारकायां विभूषणम्'महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। नगरी के दक्षिण में लतावेष्ट, पश्चिम में सुकक्ष और उत्तर में वेष्णुमंत पर्वत स्थित थे और इन पर्वतों के चतुर्दिक अनेक उद्यान थे। महानगरी द्वारका के पचास प्रवेश द्वार थे- <balloon title=" ('महापुरी द्वारवतीं पंचाशद्भिर्मुखै र्युताम्' महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। शायद इन्हीं बहुसंख्यक द्वारों के कारण पुरी का नाम द्वारका या द्वारवती था। पुरी चारों ओर गंभीर सागर से घिरी हुई थी। सुन्दर प्रासादों से भरी हुई द्वारका श्वेत अटारियों से सुशोभित थी। तीक्ष्ण यन्त्र, शतघ्नियां , अनेक यन्त्रजाल और लौहचक्र द्वारका की रक्षा करते थे-<balloon title="('तीक्ष्णयन्त्रशतघ्नीभिर्यन्त्रजालै: समन्वितां आयसैश्च महाचक्रैर्ददर्श। महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>।

द्वारका की लम्बाई बारह योजना तथा चौड़ाई आठ योजन थी तथा उसका उपनिवेश (उपनगर) परिमाण में इसका द्विगुण था <balloon title="('अष्ट योजन विस्तीर्णामचलां द्वादशायताम् द्विगुणोपनिवेशांच ददर्श द्वारकांपुरीम्'महाभारत सभा पर्व 38)" style="color:blue">*</balloon>। द्वारका के आठ राजमार्ग और सोलह चौराहे थे जिन्हें शुक्राचार्य की नीति के अनुसार बनाया गया था <balloon title=('अष्टमार्गां महाकक्ष्यां महाषोडशचत्वराम् एव मार्गपरिक्षिप्तां साक्षादुशनसाकृताम्'महाभारत सभा पर्व 38) style=color:blue>*</balloon>।

द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण का राजप्रासाद चार योजन लंबा-चौड़ा था, वह प्रासादों तथा क्रीड़ापर्वतों से संपन्न था। उसे साक्षात विश्वकर्मा ने बनाया था [1]। श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात समग्र द्वारका, श्रीकृष्ण का भवन छोड़कर समुद्रसात हो गयी थी जैसा कि विष्णु पुराण के इस उल्लेख से सिद्ध होता है-'प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि: वासुदेवगृहं त्वेकं न प्लावयति सागर:,<balloon title="विष्णु0 5,38,9" style="color:blue">*</balloon>।


टीका-टिप्पणी

  1. ('साक्षाद् भगवतों वेश्म विहिंत विश्वकर्मणा, ददृशुर्देवदेवस्य-चतुर्योजनमायतम्, तावदेव च विस्तीर्णमप्रेमयं महाधनै:, प्रासादवरसंपन्नं युक्तं जगति पर्वतै:')