नारद भक्ति सूत्र: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "चिन्ह" to "चिह्न") |
||
Line 4: | Line 4: | ||
*अन्याश्रय का त्याग करना, भगवान को अपने सभी आचरण अर्पित कर देना, कामना का त्याग करना, ये भक्ति के लक्षण हैं। | *अन्याश्रय का त्याग करना, भगवान को अपने सभी आचरण अर्पित कर देना, कामना का त्याग करना, ये भक्ति के लक्षण हैं। | ||
*ज्ञानयुक्त भक्ति उत्तम है। | *ज्ञानयुक्त भक्ति उत्तम है। | ||
*भगवान के विरह से व्याकुल हो जाना भक्ति का | *भगवान के विरह से व्याकुल हो जाना भक्ति का चिह्न है। | ||
*आदर्श [[भक्ति]] के दृष्टांत के रूप में [[ब्रज]] की [[गोपी|गोपियों]] का उल्लेख किया जाता है। | *आदर्श [[भक्ति]] के दृष्टांत के रूप में [[ब्रज]] की [[गोपी|गोपियों]] का उल्लेख किया जाता है। | ||
Revision as of 11:00, 1 March 2012
- देवर्षि नारद द्वारा रचित नारद भक्ति सूत्र के 84 सूत्रों में भक्ति विषयक विचार दिए गये हैं।
- भक्ति की व्याख्या, महत्ता, लक्षण, साधन, भगवान का स्वरूप, भक्ति के नियम, फल आदि की इसमें विशद चर्चा की गयी है।
- भक्ति भगवान के प्रति परम प्रेमरूपा है, अमृत स्वरूपा है।
- अन्याश्रय का त्याग करना, भगवान को अपने सभी आचरण अर्पित कर देना, कामना का त्याग करना, ये भक्ति के लक्षण हैं।
- ज्ञानयुक्त भक्ति उत्तम है।
- भगवान के विरह से व्याकुल हो जाना भक्ति का चिह्न है।
- आदर्श भक्ति के दृष्टांत के रूप में ब्रज की गोपियों का उल्लेख किया जाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (23)