अनुभव -शिवदीन राम जोशी: Difference between revisions
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समझ कर बात ऐसी ही, समझ अपनी में धरता है।। | समझ कर बात ऐसी ही, समझ अपनी में धरता है।। | ||
दया का भाव रख दिल में, विचरता भूमि के ऊपर। | दया का भाव रख दिल में, विचरता भूमि के ऊपर। | ||
क्षमा संतोष ही धन है, रहा इस | क्षमा संतोष ही धन है, रहा इस प्रण पर ही निर्भर।। | ||
कहो क्यों नां अपनाएंगे, दयालु भक्त वत्सल है। | कहो क्यों नां अपनाएंगे, दयालु भक्त वत्सल है। | ||
उन्हीं के नाम पर मस्ता, किया मन को जो निश्छल है।। | उन्हीं के नाम पर मस्ता, किया मन को जो निश्छल है।। |
Latest revision as of 14:57, 18 March 2012
खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा है। |
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