भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 2: Line 2:
<center>
<center>
{| width="70%" class="bharattable" border="1"
{| width="70%" class="bharattable" border="1"
|-
|
<div style="font-size:16px; text-align:center;">[[भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012]]</div>
[[चित्र:Shershah-suri.jpg|100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012]]
<poem>
[[भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012|सत्ता का रंग]]
    [[शेरशाह सूरी]] जब [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठा तो कहते हैं कि सबसे पहले वह शाही बाग़ के तालाब में अपना चेहरा देखकर यह परखने गया कि उसका माथा बादशाहों जैसा चौड़ा है या नहीं !
जब शेरशाह से पूछा गया "आपके बादशाह बनने पर क्या-क्या किया जाय ?"
तब शेरशाह ने कहा "वही किया जाय जो बादशाह बनने पर किया जाता है!" [[भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012|पूरा पढ़ें]]
</poem>
|-
|-
|  
|  

Revision as of 13:12, 7 April 2012

भारतकोश साप्ताहिक सम्पादकीय लेख सूची

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 7 अप्रॅल 2012

सत्ता का रंग
     शेरशाह सूरी जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो कहते हैं कि सबसे पहले वह शाही बाग़ के तालाब में अपना चेहरा देखकर यह परखने गया कि उसका माथा बादशाहों जैसा चौड़ा है या नहीं !
जब शेरशाह से पूछा गया "आपके बादशाह बनने पर क्या-क्या किया जाय ?"
तब शेरशाह ने कहा "वही किया जाय जो बादशाह बनने पर किया जाता है!" पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012

उकसाव का इमोशनल अत्याचार
     "नये क़ैदी की क्या ख़बर है हवलदार ? उसको टॉर्चर किया कि नहीं ?"
"जी सर ! आतंकवादियों को टॉर्चर करने के लिए रूल-बुक में तीन तरीक़े दिए गए हैं। हमने तीनों कर लिए। ऑडर की कंप्लाइंस हो गयी सर, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ सर..." पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012

गुड़ का सनीचर
    "क्या बताऊँ पंडिज्जी ! बड़ी तंगी चल रही है। एक के बाद एक सब काम-काज बिगड़ते जा रहे हैं। खोपड़ी भिन्नौट हो गई है, काम ही नहीं कर रही पता नईं चक्कर क्या है ?" ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012

ज़माना
    "देखिए नया बजट आने वाला है हर चीज़ की क़ीमत बढ़ेगी। बजट से पहले ही मुझे पति लेना है। आपके पास कौन-कौन से प्लान और पॅकेज हैं ?"
"मॅम! अगर आप अपना बजट बता दें तो मुझे थोड़ी आसानी हो जाएगी, आपका बजट क्या है ? मैं उसी तरह के पति आपको बताऊँगा" ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012

राज की नीति
    आपकी हैसियत ही क्या है मेरे सामने। आपके पिता मेरे पिता के यहाँ फ़र्नीचर पर पॉलिश किया करते थे। लिंकन ने कहा कि यह सही है कि मेरे पिता फ़र्नीचर पर पॉलिश करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ख़राब पॉलिश नहीं की होगी। उन्होंने अपना काम सर्वश्रेष्ठ तरीक़े से किया और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने बेटे को ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2012

कौऔं का वायरस
    23 दिनों तक लगातार कोई कार्य, किसी समय विशेष पर करते रहें तो 24 वें दिन ठीक उसी समय बेचैनी शुरू हो जाती है और उस कार्य को करने के बाद ही ख़त्म होती है। हमारी 'बॉडी क्लॉक' 23 दिन में प्रशिक्षित हो कर उस कार्य की 'फ़ाइल' को आदत वाले 'फ़ोल्डर' में डाल देती है और 'अलार्म' भी लगा देती है। ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 फ़रवरी 2012

छापाख़ाने का आभार
    मिस्र में राजवंशों की शुरुआत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले ही हो गयी थी। मशहूर फ़राउन रॅमसी (ये वही रॅमसी या रामासेस है जो मूसा के समय में था) का नाम पढ़ने में भी यही कठिनाई सामने आयी। कॉप्टिक भाषा (मिस्री ईसाइयों की भाषा) में इसका अर्थ है- रे या रा (सूर्य) का म-स (बेटा) अर्थात सूर्य का पुत्र। सोचने वाली बात ये है कि भगवान 'राम' का नाम भी इसी प्रकार का है और वे भी सूर्य वंशी ही हैं। अगर ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है तो बेहद दिलचस्प इत्तफ़ाक़ है। नाम कोई भी रहा हो रेमसी, इमहोतेप या टॉलेमी; स्वरों के बिना उन्हें सही पढ़ना बहुत कठिन था। ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 18 फ़रवरी 2012

बात का घाव
    घरवाले पहले डरे फिर शेर के साथ सहज हो गये लेकिन महीने भर में ही शेर की ख़ुराक ने लकड़हारे के घर का बजट और उसकी बीवी का दिमाग़ ख़राब कर दिया। असल में शेर खायेगा भी तो अपने शरीर और आदत के हिसाब से। एक बार में तीस चालीस किलो मांस और वह भी रोज़ाना। बाज़ार से मांस और दूध ख़रीदने में रघु के घर के बर्तन तक बिकने की नौबत आ गई। ...पूरा पढ़ें

100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 फ़रवरी 2012

चिल्ला जाड़ा
    बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी ...पूरा पढ़ें