कांग्रेस अधिवेशन सूरत: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
'''कांग्रेस का सूरत अधिवेशन''' [[1907]] ई. में [[सूरत]] में सम्पन्न हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अधिवेशन अति महत्त्वपूर्ण था। गरम दल तथा नरम दल के आपसी मतभेदों के कारण इस अधिवेशन में [[कांग्रेस]] दो भागों में विभाजित हो गई। इसके बाद [[1916]] ई. के 'लखनऊ अधिवेशन' में पुन: दोनों दलों का आपस में विलय हुआ। | '''कांग्रेस का सूरत अधिवेशन''' [[1907]] ई. में [[सूरत]] में सम्पन्न हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अधिवेशन अति महत्त्वपूर्ण था। गरम दल तथा नरम दल के आपसी मतभेदों के कारण इस अधिवेशन में [[कांग्रेस]] दो भागों में विभाजित हो गई। इसके बाद [[1916]] ई. के '[[कांग्रेस अधिवेशन लखनऊ|लखनऊ अधिवेशन]]' में पुन: दोनों दलों का आपस में विलय हुआ। | ||
'सूरत अधिवेशन' [[26 दिसम्बर]], 1907 ई, को [[ताप्ती नदी]] के किनारे सम्पन्न हुआ। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन एवं अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नरम दल तथा गरम दल दोनों में काफ़ी मतभेद था। उग्रवादियों ने सूरत कांग्रेस का अध्यक्ष पहले [[लोकमान्य तिलक]] को और बाद में [[लाला लाजपत राय]] को बनाना चाहा, परन्तु उदारवादी दल ने डॉक्टर रासबिहारी घोष को अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया। अधिवेशन से पूर्व ही दोनों दलों में भयंकर मार-पीट हुई, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का दो भागो में विभाजन हो गया। [[एनी बेसेंट]] ने कहा "सूरत की घटना कांग्रेस के इतिहास में सबसे अधिक दुःखद घटना है।" सूरत विभाजन के बाद गरम दल का नेतृत्व तिलक, लाला लाजपत राय एवं [[विपिन चन्द्र पाल]] (लाल, बाल, पाल) ने किया। नरम दल के नेता [[गोपाल कृष्ण गोखले]] थे। 1916 ई. में [[कांग्रेस]] के 'लखनऊ अधिवेशन' में पुनः दोनों दलों का आपस में विलय हो गया। | 'सूरत अधिवेशन' [[26 दिसम्बर]], 1907 ई, को [[ताप्ती नदी]] के किनारे सम्पन्न हुआ। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन एवं अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नरम दल तथा गरम दल दोनों में काफ़ी मतभेद था। उग्रवादियों ने सूरत कांग्रेस का अध्यक्ष पहले [[लोकमान्य तिलक]] को और बाद में [[लाला लाजपत राय]] को बनाना चाहा, परन्तु उदारवादी दल ने डॉक्टर रासबिहारी घोष को अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया। अधिवेशन से पूर्व ही दोनों दलों में भयंकर मार-पीट हुई, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का दो भागो में विभाजन हो गया। [[एनी बेसेंट]] ने कहा "सूरत की घटना कांग्रेस के इतिहास में सबसे अधिक दुःखद घटना है।" सूरत विभाजन के बाद गरम दल का नेतृत्व तिलक, लाला लाजपत राय एवं [[विपिन चन्द्र पाल]] (लाल, बाल, पाल) ने किया। नरम दल के नेता [[गोपाल कृष्ण गोखले]] थे। 1916 ई. में [[कांग्रेस]] के 'लखनऊ अधिवेशन' में पुनः दोनों दलों का आपस में विलय हो गया। |
Revision as of 07:43, 22 April 2012
कांग्रेस का सूरत अधिवेशन 1907 ई. में सूरत में सम्पन्न हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अधिवेशन अति महत्त्वपूर्ण था। गरम दल तथा नरम दल के आपसी मतभेदों के कारण इस अधिवेशन में कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई। इसके बाद 1916 ई. के 'लखनऊ अधिवेशन' में पुन: दोनों दलों का आपस में विलय हुआ।
'सूरत अधिवेशन' 26 दिसम्बर, 1907 ई, को ताप्ती नदी के किनारे सम्पन्न हुआ। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन एवं अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नरम दल तथा गरम दल दोनों में काफ़ी मतभेद था। उग्रवादियों ने सूरत कांग्रेस का अध्यक्ष पहले लोकमान्य तिलक को और बाद में लाला लाजपत राय को बनाना चाहा, परन्तु उदारवादी दल ने डॉक्टर रासबिहारी घोष को अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया। अधिवेशन से पूर्व ही दोनों दलों में भयंकर मार-पीट हुई, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का दो भागो में विभाजन हो गया। एनी बेसेंट ने कहा "सूरत की घटना कांग्रेस के इतिहास में सबसे अधिक दुःखद घटना है।" सूरत विभाजन के बाद गरम दल का नेतृत्व तिलक, लाला लाजपत राय एवं विपिन चन्द्र पाल (लाल, बाल, पाल) ने किया। नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे। 1916 ई. में कांग्रेस के 'लखनऊ अधिवेशन' में पुनः दोनों दलों का आपस में विलय हो गया।
|
|
|
|
|