साँसों के मुसाफिर -गोपालदास नीरज: Difference between revisions

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कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
इसका ख़ैमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?

Revision as of 14:01, 25 August 2012

साँसों के मुसाफिर -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

इसको भी अपनाता चल,
उसको भी अपनाता चल,
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।

बिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो,
नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,
तपे प्रेम के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,
कौन हृदय है नहीं प्यार की जिसने की दरबानी हो,

तट-तट रास रचाता चल,
पनघट-पनघट गाता चल,
प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।

कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है,
इसका ख़ैमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है,
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?

गलियाँ गाँव गुँजाता चल,
पथ-पथ फूल बिछाता चल,
हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।

हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,
जंजीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी
दुनिया भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,

सोई किरन जगाता चल,
रूठी सुबह मनाता चल,
प्यार नकाबों में न बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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