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'''माया''' एक [[संस्कृत]] शब्द है जिसका अर्थ जादूगरी या भ्रम, समझ से परे है। हिंदू दर्शन, विशेष रूप से [[वेदांत]] की रूढ़िवादी व्यवस्था के [[अद्वैत|अद्वैत मत]] और [[महायान]] [[बौद्ध]] सम्प्रदाय में एक आधारभूत अवधारणा है। माया को मूलरूप से चमत्कारी शक्ति के रूप में दर्शाया गया था, जिससे [[देवता]] मनुष्य को उस बात का विश्वास दिला देते हैं, जो बाद में भ्रम साबित होती है। बाद में इसका विस्तृत अर्थ एक शक्तिशाली बल हो गया, जो यह ब्रह्मांडीय भ्रम पैदा करता है कि प्रतिभासिक विश्व वास्तविक है। इस प्रकार अद्वैतवादियों के लिए माया वह ब्रह्मांडीय शक्ति है, जो असीमित ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) को सीमित प्रतिभासिक संसार के रूप में प्रस्तुत करती है। वैयक्तिक स्तर पर माया, स्वयं के वास्तविक स्वरूप के प्रति मानवीय अज्ञान (अविद्या) के रूप में प्रतिबिंबित होती है, जिसे मनुष्य अनुभवजन्य 'अहं' समझने की ग़लती करता है, लेकिन जो असल में [[ब्रह्मा]] के समरूप है।  
'''माया''' एक [[संस्कृत]] शब्द है जिसका अर्थ जादूगरी या भ्रम, समझ से परे है। हिंदू दर्शन, विशेष रूप से [[वेदांत]] की रूढ़िवादी व्यवस्था के [[अद्वैत|अद्वैत मत]] और [[महायान]] [[बौद्ध]] सम्प्रदाय में एक आधारभूत अवधारणा है। माया को मूलरूप से चमत्कारी शक्ति के रूप में दर्शाया गया था, जिससे [[देवता]] मनुष्य को उस बात का विश्वास दिला देते हैं, जो बाद में भ्रम साबित होती है। बाद में इसका विस्तृत अर्थ एक शक्तिशाली बल हो गया, जो यह ब्रह्मांडीय भ्रम पैदा करता है कि प्रतिभासिक विश्व वास्तविक है। इस प्रकार अद्वैतवादियों के लिए माया वह ब्रह्मांडीय शक्ति है, जो असीमित ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) को सीमित प्रतिभासिक संसार के रूप में प्रस्तुत करती है। वैयक्तिक स्तर पर माया, स्वयं के वास्तविक स्वरूप के प्रति मानवीय अज्ञान (अविद्या) के रूप में प्रतिबिंबित होती है, जिसे मनुष्य अनुभवजन्य 'अहं' समझने की ग़लती करता है, लेकिन जो असल में [[ब्रह्मा]] के समरूप है।  




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==संबंधित लेख==
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Revision as of 11:17, 11 September 2012

माया एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ जादूगरी या भ्रम, समझ से परे है। हिंदू दर्शन, विशेष रूप से वेदांत की रूढ़िवादी व्यवस्था के अद्वैत मत और महायान बौद्ध सम्प्रदाय में एक आधारभूत अवधारणा है। माया को मूलरूप से चमत्कारी शक्ति के रूप में दर्शाया गया था, जिससे देवता मनुष्य को उस बात का विश्वास दिला देते हैं, जो बाद में भ्रम साबित होती है। बाद में इसका विस्तृत अर्थ एक शक्तिशाली बल हो गया, जो यह ब्रह्मांडीय भ्रम पैदा करता है कि प्रतिभासिक विश्व वास्तविक है। इस प्रकार अद्वैतवादियों के लिए माया वह ब्रह्मांडीय शक्ति है, जो असीमित ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) को सीमित प्रतिभासिक संसार के रूप में प्रस्तुत करती है। वैयक्तिक स्तर पर माया, स्वयं के वास्तविक स्वरूप के प्रति मानवीय अज्ञान (अविद्या) के रूप में प्रतिबिंबित होती है, जिसे मनुष्य अनुभवजन्य 'अहं' समझने की ग़लती करता है, लेकिन जो असल में ब्रह्मा के समरूप है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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