Template:साप्ताहिक सम्पादकीय: Difference between revisions
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<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]</center> | <center>[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]</center> | ||
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दुनिया की रीत निराली है। लोग 'प्रयासों' को नहीं, 'परिणामों' को देखकर शाबाशी देते हैं। 'पश्चाताप' को नहीं, 'प्रायश्चित' को सराहते हैं। 'खेती' को नहीं, 'फ़सल' को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा 'फूल' की होती है न कि 'बीज' की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा | दुनिया की रीत निराली है। लोग 'प्रयासों' को नहीं, 'परिणामों' को देखकर शाबाशी देते हैं। 'पश्चाताप' को नहीं, 'प्रायश्चित' को सराहते हैं। 'खेती' को नहीं, 'फ़सल' को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा 'फूल' की होती है न कि 'बीज' की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा लिया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|...पूरा पढ़ें]] | ||
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Revision as of 19:57, 19 March 2013
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