ऊर्जा: Difference between revisions

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([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Energy) किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की '''ऊर्जा''' कहते हैं। ऊर्जा एक अदिश राशि है। वस्तु में जिस कारण से कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा दो प्रकार की होती है- [[गतिज ऊर्जा]] एवं [[स्थितिज ऊर्जा]]।
'''ऊर्जा''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Energy) से तात्पर्य है कि- "किसी वस्तु में कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की 'ऊर्जा' कहते हैं। ऊर्जा एक अदिश राशि है। वस्तु में जिस कारण से कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे ही ऊर्जा कहा जाता है। ऊर्जा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए तथा किसी भी देश में मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी देश की सम्पन्नता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उस देश में ऊर्जा के स्रोत क्या-क्या हैं और उनका कितना उपयोग हो रहा है।
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कई प्रकार के उपायों द्वारा ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है। इन परिवर्तनों में ऊर्जा की मात्रा सर्वदा एक ही रहती है। उसमें कमी नहीं होती। इसे ऊर्जा का अविनाशिता का सिद्धांत कहा जाता है। जैसा कि कहा गया है कि- "कार्य कर सकने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं", परंतु सारी ऊर्जा को कार्य में परिणत करना संभव नहीं होता। इसलिए यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि "ऊर्जा वह है, जो उतनी ही घटती है, जितना कि कार्य किया जाता है।" इस कारण ऊर्जा को नापने के वे ही एकक होते हैं, जो कार्य को नापने के होते हैं। यदि एक किलोग्राम भार को एक मीटर ऊँचा उठाया जाता है तो [[पृथ्वी]] के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध एक विशेष मात्रा में कार्य करना पड़ता है। यदि इसी भार को दो मीटर ऊँचा उठाया जाये अथवा दो किलोग्राम भार को एक मीटर ऊँचा उठाएँ तो दोनों दशाओं में पहले की अपेक्षा दुगुना कार्य करना पड़ता है। इससे प्रकट होता है कि कार्य का परिमाण उस बल के परिमाण पर, जिसके विरुद्ध कार्य किया जाए और उस दूरी के परिमाण पर, जिस दूरी द्वारा उस बल के विरुद्ध कार्य किया जाए, निर्भर रहता है और इन दोनों परिमाणों के गुणनफल के बराबर होता है।
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Revision as of 11:42, 19 August 2013

ऊर्जा (अंग्रेज़ी:Energy) से तात्पर्य है कि- "किसी वस्तु में कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की 'ऊर्जा' कहते हैं। ऊर्जा एक अदिश राशि है। वस्तु में जिस कारण से कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे ही ऊर्जा कहा जाता है। ऊर्जा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए तथा किसी भी देश में मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी देश की सम्पन्नता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उस देश में ऊर्जा के स्रोत क्या-क्या हैं और उनका कितना उपयोग हो रहा है।

कार्य एवं ऊर्जा

कई प्रकार के उपायों द्वारा ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है। इन परिवर्तनों में ऊर्जा की मात्रा सर्वदा एक ही रहती है। उसमें कमी नहीं होती। इसे ऊर्जा का अविनाशिता का सिद्धांत कहा जाता है। जैसा कि कहा गया है कि- "कार्य कर सकने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं", परंतु सारी ऊर्जा को कार्य में परिणत करना संभव नहीं होता। इसलिए यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि "ऊर्जा वह है, जो उतनी ही घटती है, जितना कि कार्य किया जाता है।" इस कारण ऊर्जा को नापने के वे ही एकक होते हैं, जो कार्य को नापने के होते हैं। यदि एक किलोग्राम भार को एक मीटर ऊँचा उठाया जाता है तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध एक विशेष मात्रा में कार्य करना पड़ता है। यदि इसी भार को दो मीटर ऊँचा उठाया जाये अथवा दो किलोग्राम भार को एक मीटर ऊँचा उठाएँ तो दोनों दशाओं में पहले की अपेक्षा दुगुना कार्य करना पड़ता है। इससे प्रकट होता है कि कार्य का परिमाण उस बल के परिमाण पर, जिसके विरुद्ध कार्य किया जाए और उस दूरी के परिमाण पर, जिस दूरी द्वारा उस बल के विरुद्ध कार्य किया जाए, निर्भर रहता है और इन दोनों परिमाणों के गुणनफल के बराबर होता है।

प्रकार

ऊर्जा दो प्रकार की होती है-

  1. गतिज ऊर्जा
  2. स्थितिज ऊर्जा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख