आसफ़उद्दौला: Difference between revisions
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'''आसफ़उद्दौला''' (1775- | |चित्र=Asif-Ud-Daulah.jpg | ||
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'''आसफ़उद्दौला''' (1775 - 1797 ई.) [[अवध]] के [[नवाब]] [[शुजाउद्दौला]] का बेटा और उत्तराधिकारी था। | |||
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Revision as of 08:11, 3 March 2014
आसफ़उद्दौला
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जन्म | 23 सितम्बर, 1748 ई. |
जन्म भूमि | फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु तिथि | 21 सितम्बर, 1797 ई. (48 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | लखनऊ |
पिता/माता | शुजाउद्दौला और ज़ोहरा बेगम साहिबा |
उपाधि | अवध के नवाब |
शासन काल | 1775 ई. - 1797 ई. |
राज्याभिषेक | 26 जनवरी 1775 ई. |
धार्मिक मान्यता | इस्लाम धर्म |
पूर्वाधिकारी | शुजाउद्दौला |
उत्तराधिकारी | वज़ीर अली ख़ान |
संबंधित लेख | बड़ा इमामबाड़ा , रूमी दरवाज़ा |
आसफ़उद्दौला (1775 - 1797 ई.) अवध के नवाब शुजाउद्दौला का बेटा और उत्तराधिकारी था।
इतिहास
वह एक अयोग्य शासक था, जिसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से फ़ैजाबाद की सन्धि करके कम्पनी को 74 लाख रुपये वार्षिक देना स्वीकार कर किया था। उसने कम्पनी को ये रुपये इस शर्त पर देना स्वीकार किया था कि, कम्पनी अपनी दो रेजीमेण्ट फ़ौज अवध में उसके राज्य की सुरक्षा के लिए रखेगी। नवाब का वित्तीय प्रबन्ध बहुत ही दोषपूर्ण था और शीघ्र ही उस पर बक़ाया की रक़म बहुत बढ़ गई।
अवध की बेगमों की लूट
1781 ई. में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी और मराठों के बीच लड़ाई चल रही थी, उस समय कम्पनी के गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने नवाब से बक़ाया रक़म की माँग की। नवाब ने बक़ाया रक़म बेबाक करने में तब तक अपनी असमर्थता प्रकट की, जब तक उसे अपने बाप मरहूम नवाब शुजाउद्दौला द्वारा छोड़ी गई दौलत न दिला दी जाए, जो कि उसकी माँ और दादी के क़ब्ज़े में थी। वारेन हेस्टिंग्स ने अवध की बेगमों को आदेश दिया कि वे फ़ैजाबाद में अपने महल से बाहर न निकले। हेस्टिंग्स ने उनके 'महले ख़्वाजा सरां' आदि को इतनी यातनाएँ दीं कि बेगमों ने अन्त में उसकी बात मानकर रुपया दे दिया। इस काण्ड को 'अवध की बेगमों की लूट' की संज्ञा दी जाती है। नवाब आसफ़उद्दौला ने इस प्रकार कम्पनी के पदाधिकारियों से मिलकर अपनी माँ और दादी को जिस प्रकार अपमानित कराया, उससे उसकी बहुत बदनामी हुई। अवध पर 16 साल तक कुशासन करने के बाद 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु हो गई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- भारतीय इतिहास कोश | लेखक- सच्चिदानंद भट्टाचार्य | पृष्ठ- 43