भारतीय व्याख्यान -स्वामी विवेकानन्द: Difference between revisions
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भारतीय व्याख्यान -स्वामी विवेकानन्द
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लेखक | स्वामी विवेकानन्द |
मूल शीर्षक | भारतीय व्याख्यान |
अनुवादक | पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ |
प्रकाशक | रामकृष्ण मठ |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2004 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
विशेष | सप्तम संस्करण से इस पुस्तक का नाम ‘भारत में विवेकानन्द’ से ‘भारतीय व्याख्यान’ हुआ है। |
भारतीय व्याख्यान स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित पुस्तक है। पाश्चात्य देशों के भ्रमण से लौटने पर स्वामी विवेकानन्द ने सन 1897 में कोलम्बो से लेकर अल्मोड़ा तक यात्रा की थी, उसमें उन्हें स्थान-स्थान पर मान-पत्र प्रदान किये गए थे। स्वामीजी ने उन मान-पत्रों के उत्तर-स्वरूप जो अभिभाषण दिये थे, उनका संग्रह अंग्रेज़ी में ‘इण्डियन लेक्चर्स’ (Indian Lectures) नामक ग्रंथ में प्रकाशित है। ‘भारत में विवेकानन्द’’ पुस्तक का हिन्दी रुपान्तर है। इन भावयुक्त स्फूर्तिप्रद भाषणों में वेदान्त का सच्चा स्वरूप उद्घाटित है। इन्हें पढ़ने पर विदित हो जाता है कि स्वदेश तथा भारतीय संस्कृति के प्रति स्वामीजी की कितनी अपार श्रद्धा थी। यह हिन्दी अनुवाद हिन्दी साहित्य के सुविख्यात लेखक तथा कवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने किया है।
पुस्तक के अंश
पाश्चात्य देशों में अपने स्मरणीय प्रचारकार्य के बाद स्वामी विवेकानन्द 15 जनवरी 1897 को तीसरे प्रहर जहाज से कोलम्बो में उतरे और वहाँ के हिन्दू समाज ने उनका बड़ा शानदार स्वागत किया। निम्नलिखित मानपत्र उनकी सेवा में प्रस्तुत किया गया :
सेवा में,
श्रीमत् स्वामी विवेकानन्दजी
पूज्य स्वामीजी,
कोलम्बो नगर के हिन्दू निवासियों की एक सार्वजनिक सभा द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव के अनुसार आज हम लोग इस द्वीप में आपका हृदय से स्वागत करते हैं। हम इसको अपना सौभाग्य समझते हैं कि पाश्चचात्य देशों में आपके महान् धर्मप्रचारकार्य के बाद स्वदेश वापस आने पर हमको आपका सर्वप्रथम स्वागत करने का अवसर मिला।
ईश्वर की कृपा से इस महान् धर्मप्रचारकार्य को जो सफलता प्राप्त हुई है उसे देखकर हम सब बड़े कृत्यकृत्य तथा प्रफुल्लित हुए हैं। आपने यूरोपियन तथा अमेरिकन राष्ट्रों के सम्मुख यह घोषित कर दिया है कि हिन्दू आदर्श का सार्वभौम धर्म वही है, जिसमें सब प्रकार के सम्प्रदायों का सुन्दर सामंजस्य हो, जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार आध्यात्मिक आहार प्राप्त हो सके तथा जो प्रेम से प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के समीप ला सके। आपने उस महान् सत्य का प्रचार किया है तथा उसका मार्ग सिखाया है जिसकी शिक्षा आदि काल से हमारे यहाँ के महापुरुष उत्तराधिकार क्रम से देते आये हैं। इन्हीं के पवित्र चरणों के पड़ने से भारतवर्ष की भूमि सदैव पवित्र हुई है तथा इन्हीं के कल्याणप्रद चरित्र एवं प्रेरणा ये यह देश अनेकानेक परिवर्तनों के बीच गुजरता हुआ भी सदैव संसार का प्रदीप बन रहा है।
श्रीरामकृष्ण परमहंसदेव जैसे सद्गुरु की अनुप्रेरणा तथा आपकी त्यागमय लगन द्वारा पाश्चात्य राष्ट्रों को भारतवर्ष की एक आध्यात्मिक प्रतिभा के जीवन्त सम्पर्क का अमूल्य वरदान मिला है। और साथ ही पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध से अनेक भारतवासियों को मुक्त कर, आपने उन्हें अपने देश की महान् सांस्कृतिक परम्परा का दायित्व बोध कराया है।
आपने अपने महान् कर्म तथा उदाहरण द्वारा मानवजाति का जो उपकार किया है उसका बदला चुकाना सम्भव नहीं है और आपने हमारी इस मातृभूमि को एक नया तेज प्रदान किया है। हमारी यही प्रार्थना है कि ईश्वर के अनुग्रह से आपकी तथा आपके कार्य की उत्तरोत्तर उन्नति होती रहे।
कोलम्बो-निवासी हिन्दुओं की ओर से
जनवरी, 1897 [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय व्याख्यान (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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