विप्रमतीसी (रमैनी): Difference between revisions

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Latest revision as of 09:36, 4 August 2014

विप्रमतीसी रमैनी कबीर बीजक में इस तरह की एक मात्र रचना मिलती है। इसमें चौपाइयों की तीस अर्धालियाँ हैं और अन्त में एक साखी है। इसे 'विप्रमति तीसी' का बिगड़ा रूप माना जा सकता है। इसका अर्थ है 'विप्रो की मति का विवेचन करने वाली तीस पंक्तियाँ'[1] यह वास्तव में कोई काव्यरूप नहीं है। लगता है सन्तों ने इस व्यंग्य काव्यरूप का स्वयं प्रवर्त्तन किया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'कबीर मीमांसा' रामचन्द्र तिवारी, पृष्ठ 149
  2. शर्मा, रामकिशोर कबीर ग्रन्थावली (हिंदी), 100।

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