रहिमन लाख भली करो -रहीम: Difference between revisions

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लाख नेकी करो, पर दुष्ट की दुष्टता जाने की नहीं। सांप को बीन पर राग सुनाओ, और [[दूध]] भी पिलाओ, फिर भी वह दौड़कर तुम्हें काट लेगा। स्वभाव ही ऐसा है। स्वभाव का इलाज क्या?  
लाख नेकी करो, पर दुष्ट की दुष्टता जाने की नहीं। सांप को बीन पर राग सुनाओ, और [[दूध]] भी पिलाओ, फिर भी वह दौड़कर तुम्हें काट लेगा। स्वभाव ही ऐसा है। स्वभाव का इलाज क्या?  


{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन रिस को छाँड़ि के -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन विद्या, बुद्धि नहिं -रहीम}}
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Latest revision as of 11:33, 27 February 2016

‘रहिमन’ लाख भली करो, अगुनी न जाय ।
राग, सुनत पय पिअतहू, साँप सहज धरि खाय ॥

अर्थ

लाख नेकी करो, पर दुष्ट की दुष्टता जाने की नहीं। सांप को बीन पर राग सुनाओ, और दूध भी पिलाओ, फिर भी वह दौड़कर तुम्हें काट लेगा। स्वभाव ही ऐसा है। स्वभाव का इलाज क्या?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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