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मणिकरण
मणिकरण

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मणिकरण भारत के प्रसिद्ध पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह प्रसिद्ध स्थल कुल्लू से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पार्वती की घाटी में है। मणिकरण हिन्दू और मुस्लिम दोनों का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ के कई स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है।

अर्थ व कथा

मणिकरण 1737 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बहुत ही सुन्दर क्षेत्र है। यह हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध इलाकों में से गिना जाता है। मणिकरण का अर्थ है- "बहुमूल्य रत्न"। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव की पत्नी पार्वती ने अपना बहुमूल्य रत्न यहाँ के किसी जलाशय में खो दिया दिया। माँ पार्वती के निवेदन पर भगवान शिव ने अपने अनुयायीयों को रत्न खोजने के लिए कहा। लेकिन शिव के सेवक इस कार्य में सफल नहीं हो सके। तब भगवान शिव ने क्रोध में अपना तृतीय नेत्र खोला, जिसके कारण धरती में दरार पड़ गई और बहुमूल्य रत्नों और जवाहरातों का सृजन हुआ।

दर्शनीय स्थल

'गुरु नानक देवजी गुरुद्वारा' मणिकरण का प्रमुख आकर्षक स्थल है। यह धारणा है कि सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव अपने 5 चेलों के साथ इस स्थान पर आये थे। यहाँ गुरुद्वारे में बहता गर्म पानी लोगों के लिये एक मुख्‍य आकर्षण है। इसके आलावा यात्री 'शिव मंदिर' के भी दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर की यह विशेषता है कि वर्ष 1905 में आये तीव्र भूकंप से यह थोड़ा-सा झुक गया, लेकिन धराशायी नहीं हुआ। उस समय आने वाले भूकंप की रिक्‍टेयर स्‍केल पर तीव्रता आठ थी। यहाँ का 'राम मंदिर' भी प्रसिद्ध है। मणिकरण के अन्य दार्शनिक स्थल हैं-

  1. हरिंदर पहाड़ी
  2. पार्वती नदी
  3. शोजा
  4. मलन और किर्गंगा

विषेशता

यह उमामहेश्वर क्षेत्र है। पार्वती नदी के किनारे ही नहीं, धारा में भी कई स्थान से गरम पानी फुहारे की तरह ऊपर उठता है। जबकि पार्वती का जल हिमशीतल है। यहाँ खौलते पानी के स्रोत डेढ़ मील तक स्थान-स्थान पर मिलते हैं। ये पानी इतना गरम होता है कि लोग उसमें चावल-आलू पकाते हैं। नदी के तट पर गरम पानी के कुण्ड बने हैं। उनका पानी स्नान के लिए ठीक है[1]

कब जायें

मणिकरण के कई स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इसे देखने का सबसे अच्छा समय अप्रैल और जून के बीच का है।

कैसे पहुँचें

पर्यटक मणिकरण रेल मार्ग, हवाई मार्ग या फिर सड़क मार्ग द्वारा भी आसानी से आ सकते हैं।


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मणिकरण

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 20 |

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