प्रयोग:कविता बघेल 2: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 34: Line 34:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''बिशन नारायण दर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bishan Narayan Dar'', जन्म: [[1864]], [[बाराबंकी]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु: [[1916]]) [[भारत]] के राजनेता तथा जाने माने अधिवक्ता थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=545|url=}}</ref> इन पर पंडित आदित्य नाथ, कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह, [[सुरेन्द्र नाथ बनर्जी]] तथा [[इंग्लैंण्ड]] में मिले लाल मोहन घोष और चंद्रावरकर आदि के विचारों का प्रभाव पड़ा।
'''बिशन नारायण दर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bishan Narayan Dar'', जन्म: [[1864]], [[बाराबंकी]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु: [[1916]]) [[भारत]] के राजनेता तथा जाने माने अधिवक्ता थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=545|url=}}</ref> इन पर पंडित आदित्य नाथ, कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह, [[सुरेन्द्र नाथ बनर्जी]] तथा [[इंग्लैंण्ड]] में मिले लाल मोहन घोष और चंद्रावरकर आदि के विचारों का प्रभाव था।
==परिचय==
==परिचय==
प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता पंडित बिशन नारायन दर का जन्म 1864 ई. में बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में एक संपन्न कश्मीरी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित किशन नारायन दर था जो एक सरकारी सेवा में मुंसिफ थे। इनकी आरंभिक शिक्षा [[उर्दू]] और [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] में हुई। फिर [[लखनऊ]] से बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने [[इंग्लैंण्ड]] में कानून की शिक्षा पाई और [[1887]] ई. में भारत लौटने पर वकालत करने लगे। शीघ्र ही इनकी गणना अपने समय के प्रमुख अधिवक्ताओं में होने लगी।  
प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता पंडित बिशन नारायन दर का जन्म 1864 ई. में बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में एक संपन्न कश्मीरी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित किशन नारायन दर था जो एक सरकारी सेवा में मुंसिफ थे। इनकी आरंभिक शिक्षा [[उर्दू]] और [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] में हुई। फिर [[लखनऊ]] से बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने [[इंग्लैंण्ड]] में कानून की शिक्षा पाई और [[1887]] ई. में भारत लौटने पर वकालत करने लगे। शीघ्र ही इनकी गणना अपने समय के प्रमुख अधिवक्ताओं में होने लगी।  

Revision as of 10:06, 2 December 2016

कविता बघेल 2
पूरा नाम बिशन नारायण दर
जन्म 1864
जन्म भूमि बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1916
अभिभावक पिता: पंडित किशन नारायन दर
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनेता
शिक्षा बी.ए.
भाषा उर्दू और फ़ारसी
अन्य जानकारी बिशन नारायण दर विचारों में बड़े उदार और रूढ़िवादी परंपराओं का डट कर विरोध करते थे।

बिशन नारायण दर (अंग्रेज़ी: Bishan Narayan Dar, जन्म: 1864, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 1916) भारत के राजनेता तथा जाने माने अधिवक्ता थे।[1] इन पर पंडित आदित्य नाथ, कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा इंग्लैंण्ड में मिले लाल मोहन घोष और चंद्रावरकर आदि के विचारों का प्रभाव था।

परिचय

प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता पंडित बिशन नारायन दर का जन्म 1864 ई. में बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में एक संपन्न कश्मीरी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित किशन नारायन दर था जो एक सरकारी सेवा में मुंसिफ थे। इनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई। फिर लखनऊ से बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने इंग्लैंण्ड में कानून की शिक्षा पाई और 1887 ई. में भारत लौटने पर वकालत करने लगे। शीघ्र ही इनकी गणना अपने समय के प्रमुख अधिवक्ताओं में होने लगी।

राजनीतिक क्षेत्र

पंडित बिशन नारायण दर ने अपनी गतिविधियां केवल वकालत के द्वारा धन अर्जित करने तक सीमित नहीं रखीं। ये सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। उनके ऊपर तत्कालीन नेताओं-पंडित आदित्य नाथ, कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा इंग्लैंण्ड में मिले लाल मोहन घोष और चंद्रावरकर आदि के विचारों का प्रभाव पड़ा। 1882 में ये राजनीति के क्षेत्र में आए और फिर जीवन-भर उससे जुड़े रहे। इस वर्ष ये पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में सम्मिलित हुए और फिर सदा इन अधिवेशनों में भाग लेते रहे। ये बड़े प्रभावशाली वक्ता थे और कांग्रेस में महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव प्रस्तुत करने का दायित्व निभाते थे। 1911 में पंडित बिशन नारायन दर ने कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता की। इससे पूर्व ये केन्द्रीय कौंसिल के सदस्य भी रह चुके थे। इन्होंने सब जगह अपने भाषणों और लेखों में भारतवासियों की समस्याएं हल करने पर जोर दिया। उस समय के अन्य नेताओं की भांति बिशन नारायन दर भी सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने की माँग करते हुए आई.सी.एस. की परीक्षाएं इंग्लैंण्ड और भारत में साथ-साथ करने पर जोर देते थे।

व्यक्तित्व

बिशन नारायण दर विचारों में बड़े उदार और रूढ़िवादी परंपराओं का डट कर विरोध करते थे। एक बार कौंसिल में अल्पसंख्यकों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व के प्रश्न पर विचार किया जा रहा था तो इसका इन्होंने जोरदार विरोध किया और कहा कि राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं में केवल राष्ट्रीय महत्त्व के ऐसे प्रश्नों पर विचार होना चाहिए जिनका संबंध सभी भारतवासियों से हो न कि किसी छोटे वर्ग की बातों पर। इनके इंग्लैंण्ड से वापस आने पर कश्मीरी पंडित समाज ने उनसे प्रायश्चित करने के लिए कहा, पर बिशन नारायन ने साफ इंकार कर दिया। बाद में इनके विचारों की विजय हुई और यह प्रथा समाप्त हो गई।

निधन

बिशन नारायण दर का 1916 ई. में निधन हो गया।

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 545 |