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{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
'''राज खोसला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raj Khosla'', जन्म: [[31 मई]], [[1925]], [[पंजाब]]; मृत्यु: [[9 जून]], [[1991]]) [[1950]] से [[1980]] के दशक तक [[हिंदी]] फ़िल्मों में शीर्ष निर्देशक, निर्माणकर्ता और पटकथाकारों में से एक थे। उन्हें [[देव आनंद]] जैसे अभिनेताओं की सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है। [[गुरु दत्त]] के तहत अपना कॅरियर शुरू करने के बाद, वह सी.आई.डी की की तरह हिट फ़िल्में बनाते रहे। (1956), 'वो कौन थी'? (1964), 'मेरा साया' (1966), 'दोस्ताना' (1980) और मुख्य फ़िल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (1978) थी, जिसने उन्हें फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ मूवी पुरस्कार दिलाया था।
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'''अल्फ्रेड वेब''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Alfred Webb'', जन्म: [[10 मई]], 1834, आयरलैंड; मृत्यु: [[1908]], शेटलैंड, [[यूनाइटेड किंगडम]]) एक आयरिश क्वेकर था। वह तीसरा गैर-भारतीय था, जो [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का अध्यक्ष बना। वह ब्रिटिश संसद का भी सदस्य रहा।
==परिचय==
==परिचय==
अल्फ्रेड वेब का जन्म [[10 मई]], 1834 को आयरलैंड, डबलिन, गणराज्य में हुआ था। वह रिचर्ड डेविस वेब और हन्ना वेरिंग वेब का पहला बच्चा था। उसका परिवार डबलिन में एक छपाई की दुकान चलाता था। वह क्वेकर समूह का था, जिसने मताधिकार, गुलामी के उन्मूलन और साम्राज्यवाद के विरोधी जैसे सुधारों का समर्थन किया। अल्फ्रेड वेब को साहित्य और इतिहास में दिलचस्पी थी और उसने आयरिश जीवनी का संकलन लिखना शुरू किया था।
राज खोसला का जन्म 31 मई, 1925 को पंजाब के [[लुधियाना]] शहर में हुआ था। उनका बचपन से ही गीत संगीत की ओर रूझान था और वे प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे। आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज खोसला 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ पार्श्वगायक की तमन्ना लिए [[मुंबई]] आ गए। उनके चाचा देवानंद के पिता किशोरी आनंद के गहरे दोस्त थे। राज खोसला की प्रारंभिक शिक्षा अंजुमन इस्लामिक स्कूल में हुई। उन्होंने एलिफोस्टन कॉलेज में अंग्रेज़ी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।<ref>{{cite web |url=http://rgurbaxani.blogspot.in/2010/07/blog-post_06.html |title=राज खोसला- हिंदी सिनेमा के असली “हिचकॉक” |accessmonthday= |accessyear=8 जून |last=2017 |first= |authorlink= |format= |publisher=rgurbaxani.blogspot.in |language=हिंदी}}</ref>
==राजनैतिक जीवन==
==फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत==
अल्फ्रेड वेब ने [[1865]] में आयरिश राजनीति में अधिक सक्रियरूप से रुचि लेना शुरू किया। वह फ़ैनियों से प्रेरित था, हालांकि वह अहिंसा में विश्वास करता था और उस समय के फ़ैनियन का मानना ​​था कि आयरलैंड सशस्त्र क्रांति के जरिए आजादी हासिल कर सकता था। वह पहली बार [[24 फरवरी]], [[1890]] को [[यूनाइटेड किंगडम]] के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में चुना गया, जब वो वेस्ट वॉटरफोर्ड निर्वाचन क्षेत्र के लिए उप-चुनाव जीता था। [[1898]] के आम चुनाव में वो फिर से पश्चिम वाटर फोर्ड के लिए वापस आया, इस समय वह पैनलेस विरोधी के रूप में था।
मुंबई आने के बाद राज खोसला ने रंजीत स्टूडियों में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे लेकिन रंजीत स्टूडियों के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फ़िल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिती ठीक नही थी और सरदार चंदूलाल को नए पार्श्वगायक की अपेक्षा [[मुकेश]] पर ज़्यादा भरोसा था अतः उन्होंने अपनी फ़िल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।
==निर्देशक के रूप में==
राज खोसला [[1948]] के लगभग [[चेतन आनंद]], [[देवानंद]] और विजय आनंद के साथ पाली हिल में एक साथ रहने लगे। उनका चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद से बेहद स्नेह था। इस बीच राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्ही दिनों उनके पारिवारिक मित्र और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फ़िल्म (बाजी) में गुरूदत्त के सहायक निर्देशक के तौर पर नियुक्त कर लिया। वर्ष [[1954]] में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर फ़िल्म 'मिलाप' को निर्देशित करने का मौका मिला। [[देवानंद]] और गीताबाली अभिनीत फ़िल्म 'मिलाप' की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।


वेब [[दादाभाई नौरोजी]] का करीबी दोस्त था, जो [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के एक प्रमुख सदस्य थे। दादाभाई नौरोजी ने [[1894]] में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता करने के लिए वेब को आमंत्रित किया। वेब एंटी-जाति का समर्थक था।
वर्ष [[1956]] में राज खोसला ने सी.आई.डी फ़िल्म निर्देशित की। जब फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली पूरी की तब गुरूदत्त इससे काफ़ी खुश हुए। उन्होंने राज खोसला को एक नई कार भेंट की और कहा कि यह कार आपकी है। सी.आई.डी की सफलता के बाद गुरूदत्त ने राज खोसला को अपनी एक अन्य फ़िल्म के निर्देशन की भी ज़िम्मेदारी सौंपनी चाही लेकिन राज खोसला ने उन्हें यह कह कर इंकार कर दिया कि एक बड़े पेड़ के नीच भला दूसरा पेड़ कैसे पनप सकता है। इस पर गुरूदत्त ने राज खोसला से कहा कि गुरूदत्त फ़िल्म पर जितना मेरा अधिकार है उतना तुम्हारा भी है।
==फ़िल्म निर्माण के रूप में==
राज खोसला ने [[1960]] में फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'बंबई का बाबू का' फ़िल्म का निर्माण किया। फ़िल्म के जरिए राज खोसला ने अभिनेत्री [[सुचित्रा सेन]] को रूपहले पर्दे पर पेश किया। हांलाकि फ़िल्म दर्शको के बीच सराही गई लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नही मिल पाई। फ़िल्म की असफलता से राज खोसला आर्थिक तंगी में फंस गए। नायक-नायिका के भाई-बहन दिखाए जाने को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया और फ़िल्म चली नहीं।  वर्ष [[1964]] में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वह कौन थी' प्रदर्शित हुई। फ़िल्म 'वह कौन थी' के निर्माण के समय [[मनोज कुमार]] और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह [[साधना (अभिनेत्री)|साधना]] का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फ़िल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए। साथ ही फ़िल्म की सफलता के बाद राज खोसला का निर्णय सही साबित हुआ। वर्ष [[1971]] में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'मेरा गांव मेरा देश' प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म मे [[विनोद खन्ना]] खलनायक की भूमिका में थे। फ़िल्म की कहानी उन दिनों एक अखबार में छपी कहानी पर आधारित थी। वर्ष [[1980]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'दोस्ताना' राज खोसला के सिने करियर की अंतिम सुपरहिट फ़िल्म थी। फ़िल्म में [[अमिताभ बच्चन]], [[शत्रुघ्न सिन्हा]] और जीनत अमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/bollywood-focus/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%A5%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%BE-113060800071_1.htm |title=प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे राज खोसला|accessmonthday=8 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.webdunia.com |language=हिंदी}}</ref>
==मुख्य फ़िल्में==
राज खोसला द्वारा निर्देशित अन्य फ़िल्मों में 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो रास्ते' 'सोलहवां साल' 'काला पानी' 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'चिराग', 'दासी' और 'सन्नी' प्रमुख हैं। 
==निधन==
अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिनेप्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान निर्माता निर्देशक राज खोसला [[9 जून]], [[1991]] को इस दुनिया अलविदा कह गए।

Revision as of 12:55, 8 June 2017

राज खोसला (अंग्रेज़ी: Raj Khosla, जन्म: 31 मई, 1925, पंजाब; मृत्यु: 9 जून, 1991) 1950 से 1980 के दशक तक हिंदी फ़िल्मों में शीर्ष निर्देशक, निर्माणकर्ता और पटकथाकारों में से एक थे। उन्हें देव आनंद जैसे अभिनेताओं की सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है। गुरु दत्त के तहत अपना कॅरियर शुरू करने के बाद, वह सी.आई.डी की की तरह हिट फ़िल्में बनाते रहे। (1956), 'वो कौन थी'? (1964), 'मेरा साया' (1966), 'दोस्ताना' (1980) और मुख्य फ़िल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (1978) थी, जिसने उन्हें फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ मूवी पुरस्कार दिलाया था।

परिचय

राज खोसला का जन्म 31 मई, 1925 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था। उनका बचपन से ही गीत संगीत की ओर रूझान था और वे प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे। आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज खोसला 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ पार्श्वगायक की तमन्ना लिए मुंबई आ गए। उनके चाचा देवानंद के पिता किशोरी आनंद के गहरे दोस्त थे। राज खोसला की प्रारंभिक शिक्षा अंजुमन इस्लामिक स्कूल में हुई। उन्होंने एलिफोस्टन कॉलेज में अंग्रेज़ी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।[1]

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

मुंबई आने के बाद राज खोसला ने रंजीत स्टूडियों में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे लेकिन रंजीत स्टूडियों के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फ़िल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिती ठीक नही थी और सरदार चंदूलाल को नए पार्श्वगायक की अपेक्षा मुकेश पर ज़्यादा भरोसा था अतः उन्होंने अपनी फ़िल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।

निर्देशक के रूप में

राज खोसला 1948 के लगभग चेतन आनंद, देवानंद और विजय आनंद के साथ पाली हिल में एक साथ रहने लगे। उनका चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद से बेहद स्नेह था। इस बीच राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्ही दिनों उनके पारिवारिक मित्र और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फ़िल्म (बाजी) में गुरूदत्त के सहायक निर्देशक के तौर पर नियुक्त कर लिया। वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर फ़िल्म 'मिलाप' को निर्देशित करने का मौका मिला। देवानंद और गीताबाली अभिनीत फ़िल्म 'मिलाप' की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।

वर्ष 1956 में राज खोसला ने सी.आई.डी फ़िल्म निर्देशित की। जब फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली पूरी की तब गुरूदत्त इससे काफ़ी खुश हुए। उन्होंने राज खोसला को एक नई कार भेंट की और कहा कि यह कार आपकी है। सी.आई.डी की सफलता के बाद गुरूदत्त ने राज खोसला को अपनी एक अन्य फ़िल्म के निर्देशन की भी ज़िम्मेदारी सौंपनी चाही लेकिन राज खोसला ने उन्हें यह कह कर इंकार कर दिया कि एक बड़े पेड़ के नीच भला दूसरा पेड़ कैसे पनप सकता है। इस पर गुरूदत्त ने राज खोसला से कहा कि गुरूदत्त फ़िल्म पर जितना मेरा अधिकार है उतना तुम्हारा भी है।

फ़िल्म निर्माण के रूप में

राज खोसला ने 1960 में फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'बंबई का बाबू का' फ़िल्म का निर्माण किया। फ़िल्म के जरिए राज खोसला ने अभिनेत्री सुचित्रा सेन को रूपहले पर्दे पर पेश किया। हांलाकि फ़िल्म दर्शको के बीच सराही गई लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नही मिल पाई। फ़िल्म की असफलता से राज खोसला आर्थिक तंगी में फंस गए। नायक-नायिका के भाई-बहन दिखाए जाने को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया और फ़िल्म चली नहीं। वर्ष 1964 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वह कौन थी' प्रदर्शित हुई। फ़िल्म 'वह कौन थी' के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फ़िल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए। साथ ही फ़िल्म की सफलता के बाद राज खोसला का निर्णय सही साबित हुआ। वर्ष 1971 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'मेरा गांव मेरा देश' प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म मे विनोद खन्ना खलनायक की भूमिका में थे। फ़िल्म की कहानी उन दिनों एक अखबार में छपी कहानी पर आधारित थी। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दोस्ताना' राज खोसला के सिने करियर की अंतिम सुपरहिट फ़िल्म थी। फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।[2]

मुख्य फ़िल्में

राज खोसला द्वारा निर्देशित अन्य फ़िल्मों में 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो रास्ते' 'सोलहवां साल' 'काला पानी' 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'चिराग', 'दासी' और 'सन्नी' प्रमुख हैं।

निधन

अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिनेप्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान निर्माता निर्देशक राज खोसला 9 जून, 1991 को इस दुनिया अलविदा कह गए।

  1. 2017। राज खोसला- हिंदी सिनेमा के असली “हिचकॉक” (हिंदी) rgurbaxani.blogspot.in।
  2. प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे राज खोसला (हिंदी) hindi.webdunia.com। अभिगमन तिथि: 8 जून, 2017।