ईर्ष्या: Difference between revisions

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{{शब्द संदर्भ नया
|अर्थ=किसी को अपने से अधिक उन्नत, संपन्न या सुखी देखकर मन में होनेवाला वह कष्ट या जलन जिसके साथ उस व्यक्ति को वैभव सुख आदि से वंचित करके स्वयं उसका स्थान लेने की अभिलाषा लगी रहती है, डाह।
|अर्थ=किसी को अपने से अधिक उन्नत, संपन्न या सुखी देखकर मन में होने वाला वह कष्ट या जलन जिसके साथ उस व्यक्ति को वैभव सुख आदि से वंचित करके स्वयं उसका स्थान लेने की अभिलाषा लगी रहती है, डाह।
|व्याकरण=स्त्रीलिङ्ग ([[संस्कृत]]√ईर्ष्य+अ-टाप्) ([[विशेषण]] [[ईर्ष्यक]], ईर्ष्यालु)
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|उदाहरण=
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Latest revision as of 13:53, 6 September 2017