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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
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| {निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50
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| -'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट
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| -'राज्य की उच्चतर तार्किकता'- बोसांके
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| -'राज्य समुदायों का समुदाय'- ग्रीन
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| +'मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार'- लॉक
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| ||लॉक के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे और प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का आदर आता था। इसमें मुख्य रूप से तीन प्राकृतिक अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के थे।
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| {"राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन हैं।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-58
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| |type="()"}
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| -मैकाइवर
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| -फ़ाइनर
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| -ब्राइस
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| +लास्की
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| ||'राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन है।" यह कथन लास्की का है। वास्तव में राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। प्रो. मुनरो ने कहा है कि लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। मैकाइवर ने कहा है कि जिस राज्य में दल प्रणाली नहीं होती उसमें क्रांति ही सरकार को बदलने का एक मात्र तरीका है। दल प्रणाली से क्रांति की आवश्यकता नहीं होती और संवैधानिक तरीके से शासन में परिवर्तन किया जा सकता है।"
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| {"समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज नहीं है। मैं लॉर्ड एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतंत्रता की आशा ही व्यर्थ हो गई है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-25
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| -मैजिनी
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| +लास्की
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| -वाल्टेयर
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| -जॉन मिल्टन
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| ||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के [[मस्तिष्क]] में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक ग़लत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य ग़लत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है।
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| {"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69
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| |type="()"}
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| +लॉर्ड एक्टन
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| -लॉर्ड ब्राइस
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| -लॉर्ड बेकन
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| -लॉर्ड रोजर एक्विनास
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| ||"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन लॉर्ड कथन लॉर्ड ऐक्टन का है। लॉर्ड एक्टन मानते है कि शक्ति ही बुराई की जड़ है। कोई राजा या पोप जिसमें शक्ति केंद्रीकृत होती है वहां उसका दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित होता है। इसी संदर्भ में ऐक्टन ने कहा है कि शक्ति भ्रष्ट करती है।
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| {[[संसद|भारतीय संसद]] के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक किस संबंध में आहूत होती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-55
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| |type="()"}
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| -संविधान संशोधन विधेयक
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| -वित्त विधेयक
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| -[[भारत]] के [[उपराष्ट्रपति|उप-राष्ट्रपति]] का निर्वाचन
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| +साधारण विधेयक
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| ||साधारण विधेयक के संदर्भ में [[संसद]] के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है।
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| {[[भारतीय संविधान]] के किस अनुच्छेद के अंतर्गत [[राज्य सभा]], विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर [[संसद]] को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56
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| |type="()"}
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| -अनुच्छेद 247
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| -अनुच्छेद 248
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| +अनुच्छेद 249
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| -अनुच्छेद 250
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| ||अनुच्छेद के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण [[भारत]] या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि [[राज्य सभा]] द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा।
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| {[[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114
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| |type="()"}
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| -[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)|मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी]]
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| -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] पार्टी
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| +[[समाजवादी पार्टी]]
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| -[[बहुजन समाज पार्टी]]
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| ||[[समाजवादी पार्टी]], [[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) [[भारतीय जनता पार्टी]], (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)|कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी)]], (4) [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया]], (5) बहुजन समाज पार्टी, (6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी।
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| {समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64
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| |type="()"}
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| -कोई आर्थिक नियोजन न हो
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| -बहुराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक नियोजन हो
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| -व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो
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| +राज्य के द्वारा नियोजन हो
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| ||समाजवाद राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन का पक्षधर है। पूंजीवाद का विरोधी दर्शन होने के नाते समाजवाद भूमि, उद्योग तथा उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व (राज्य द्वारा स्वामित्व) की वकालत करता है। समाजवादियों के अनुसार वैयक्तिक उद्योग एक वैक्तिक लूटमार है। ब्लैचफोर्ड के अनुसार" भूमि तथा उत्पादन के सभी साधनों को राष्ट्रीय संपत्ति बना दो। सभी खेतों, खानों जहाजों, रेलों को राष्ट्रीय नियंत्रण में रख दो। बस व्यावहारिक समाजवाद पूरा हो जायेगा।"
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| {[[मैक्स वेबर]], दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79
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| |type="()"}
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| -दार्शनिक
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| -आर्थिक
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| -आध्यात्मिक
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| +समाजशास्त्रीय
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| ||समाजशास्त्र, समाज के उद्भव, विकास, संगठनतंत्र और संस्थाओं के साथ-साथ, समाज के सामाजिक व्यवहार को वैज्ञानिक तौर से समझने का विज्ञान है। मैक्स वेबर, दुर्खीम एवं पेरेटो तीनों ही समकालीन यूरोपीय समाजशास्त्री थे जो तत्कालीन यूरोपीय समाज की समस्याओं को अपने दृष्टिकोणों के आधार पर समझते थे।
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| {"अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39
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| |type="()"}
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| +मार्क्स का
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| -लेनिन का
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| -स्टालिन का
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| -माओ का
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| ||मार्क्स 'कम्युनिस्ट मैनीफेसटो' (साम्यवादी घोषणा पत्र) में लिखता है कि "अभी तक के समस्त समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।" मार्क्स ने इसमें कुल पांच अवस्थाओं की बात की है जिसमें प्रारंभिक आदिम साम्यवादी अवस्था तथा अंतिम साम्यवादी अवस्था को छोड़कर अन्य तीनों अवस्थाओं में वर्ग विद्यमान रहे तथा उनके बीच संघर्ष चलता रहा। दास व्यवस्था में स्वामी तथा दास के मध्य, सामंती व्यवस्था में सामंत तथा कृषक के मध्य तथा पूंजीवाद व्यवस्था में बुर्जुग एवं सर्वहारा के मध्य संघर्ष विद्यमान रहा। इस प्रकार मानव इतिहास कुछ नहीं अपितु वर्ग संघर्ष की कहानी मात्र है।
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| {"ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा।" ये क्या है?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50 | | {"ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा।" ये क्या है?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50 |