प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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||फ़ेबियन समाजवद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था। | ||फ़ेबियन समाजवद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था। | ||
{राज्य के कार्यों की परंपरागत विचारधारा के अनुसार अनिवार्य तथा ऐच्छिक दो भागों में बांटा गया है लेकिन वर्तमान समय में समय की अवधारणा के अनुसार अनिवार्य और ऐच्छिक का भेद समाप्त है तथा समस्त कार्य अनिवार्य ही माने जा रहे हैं।(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-53 | |||
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+लोक कल्याणकारी राज्य | |||
-अनिवार्य सेवा राज्य | |||
-लोकतांत्रिक राज्य | |||
-आदर्शवादी राज्य | |||
||परंपरागत विचारधारा राज्य के कार्यों को दो वर्गों (अनिवार्य तथा ऐच्छिक) में विभाजित करने की रही है और यह माना जाता रहा है कि अनिवार्य कार्य तो राज्य के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाने जरूरी हैं, किंतु ऐच्छिक कार्य राज्य की जनता के हित में होते हुए भी राज्य के द्वारा उनका दिया जाना तत्कालीन समय की विशेष परिस्थितियों और शासन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन लोक-कल्याणकारी राज्य की धारणा के विकास के परिणामस्वरूप अनिवार्य और ऐच्छिक कार्यों की वह सीमा-रेखा समाप्त हो गई है और अब यह माना जाने लगा है कि परंपरागत रूप में ऐच्छिक कहे जाने वाले कार्य भी राज्य के लिए उतने ही अवश्यक हैं, जितने कि अनिवार्य समझे जाने वाले कार्य्। | |||
{"इतिहास कुलीन वर्गों का श्मशान है।" यह कथन किस विचारक का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-61 | |||
|type="()"} | |||
-प्लेटो | |||
+पैरेटो | |||
-मोस्का | |||
-बर्नहम | |||
||पैरेटो 'अभिजन वर्ग' सिद्धांत का प्रवक्ता है। इसके अनुसार, अभिजनों में संरचण होता है। कोई भी राजनीतिक अभिजन स्थायी नहीं होता है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति और अभिजन वर्ग जनवरत रूप से ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर, और नीचे स्तर से ऊंचे स्तर की ओर जाते रहते हैं। पतनकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ती रहती है और दूसरी ओर शासित वर्गों में ऊंचे गुणों से संपन्न तत्त्व उभरते रहते हैं। पैरेटो का कहना हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से अमाज का प्रत्येक अभिजन वर्ग अंतत: नष्ट हो जाता है और उसके स्थान पर दूसरे लोग आ जाते हैं। इसके पैरेटो ने इतिहास को 'कुलीन वर्गों का शमशान' कहा है। | |||
{यह कथन किसका है "ईश्वर जिसने हमें जन्म दियाअ उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-88,प्रश्न-28 | |||
|type="()"} | |||
-गांधीजी | |||
-लास्की | |||
-मिल | |||
+जेफरसन | |||
||थामस जेफरसन अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति और 'अमेरिकी' 'स्वतंत्रता की घोषणा' के मुख्य लेखक थे। उन्होंने कहा था कि "ईश्वर जिसने हमें जन्म दिया उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की।" जेदरसन का ही कथन है कि जहां प्रेस की आजादी होती है और सभी पढ़ने के योग्य होने हैं वहा सभी सुरक्षित होते हैं। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
महात्मा गांधी के प्रमुख कथन निम्नलिखित हैं- | |||
.आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। | |||
.जब तक गलती करने की स्वतंत्रता न हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। | |||
.पृथ्वी सभी मनुष्यों की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं। | |||
.मिल ने स्वतंत्रा का नकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। 'ऑन लिबर्टी' में मिल ने स्वतंत्रता संबंधी विचार दिए। मिल के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन में राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम संभव सीमा तक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की छूट ही स्वतंत्रता है।" | |||
.लास्की के अनुसार, "राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति ही राजनीतिक स्वतंत्रता है।" | |||
{इनमें से कौन राजनीतिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-72 | |||
|type="()"} | |||
+राजनीतिक व्यवस्था के अंग एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते। | |||
-राजनीतिक व्यवस्था की सीमा होती है। | |||
-राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण होता है। | |||
-राजनीतिक व्यवस्था का वैध बाह्मकारी शक्ति होती है। | |||
||आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार बताए हैं- | |||
.भागों की अंतनिर्भरता या अंत:संबंधित गतिविधियां, .राजनीतिक व्यवस्था की सीमा, .राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण, और .वैध बाध्यकारी शक्ति। | |||
{लोक लेखा-समिति अपना प्रतिवेदन सौंपती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-59 | |||
|type="()"} | |||
-[[राष्ट्रपति]] को | |||
-[[प्रधानमंत्री]] को | |||
+लोक सभा को | |||
-वित्त मंत्री को | |||
||लोक सभा समिति अपना प्रतिवेदन लोक सभा के स्पीकर (अध्यक्ष) को प्रस्तुत करती है क्योंकि यह वित्तीय समिति है साथ ही यह समिति लोक सभा की समिति है। राज्य सभा के सदस्य इसमें सहयुक्त होते हैं जिससे समिति सुदृढ़ हो जाए। | |||
{इनमें से कौन-सा तथ्य संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के संदर्भ में सत्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-117 | |||
|type="()"} | |||
-वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं | |||
-उनकी नियुक्ति 6 वर्ष या जब तक वे 65 वर्ष के हों, जो भी पहले हो, के लिए होती है | |||
+वे प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त होते हैं | |||
-वे निष्पक्ष होते हैं | |||
||संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष या जब तक वह 65 वर्ष आयु के हों, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान निष्पक्षा से कार्य करने हेतु वे कर्त्तव्यबद्ध होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि कथन-3 असत्य है। | |||
{विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना कहां हुई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-63,प्रश्न-68 | |||
|type="()"} | |||
-चीन में | |||
+सोवियत संघ में | |||
-क्यूबा में | |||
-चेकोस्लोवालिया में | |||
||विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना सोवियत संघ में 1917 में हुई थी। लेनिन सोवियत संघ की बोल्शेविक क्रांति (1917) के कर्णधार थे। यह प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) का समय था जब लेनिन ने अपनी विख्यात कृति 'साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है' (1916) लिखी। इसमें लेनिन ने तर्क दिया है कि पूंजीवाद राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा का शोषण तो करता ही है पर यह साम्राज्यवाद का जाल विछाकर अल्प विकसित देशों का शोषण भी करता है। इसी नारे के साथ लेनिन ने रूस में क्रांन्ति कर समाजवादी राज्य की स्थापना की। | |||
{"समाज की उन्नति के लिए 'विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही" आवश्यक है।" निम्नलिखित विचारकों में से किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न- 82 | |||
|type="()"} | |||
+फ्रांसिस बेकन | |||
-ज्यां जाक रूसो | |||
-ल्यूकाच | |||
-सी.बी. मैक्फर्सन | |||
||फ्रांसिस बेकन के अनुसार "समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक है"। | |||
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Revision as of 12:23, 12 November 2017
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