जिहि रहीम तन मन लियो -रहीम: Difference between revisions

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जिस प्रिय मित्र ने तन और मन पर कब्जा कर रक्खा है और [[हृदय]] में जो सदा के लिए बस गया है, उससे सुख और दु:ख कहने की अब कौन-सी बात बाकी रह गयी है?<ref>दोनों के तन एक हो गये, और मन भी दोनों के एक ही।</ref>
जिस प्रिय मित्र ने तन और मन पर कब्जा कर रक्खा है और [[हृदय]] में जो सदा के लिए बस गया है, उससे सुख और दु:ख कहने की अब कौन-सी बात बाकी रह गयी है?<ref>दोनों के तन एक हो गये, और मन भी दोनों के एक ही।</ref>


{{लेख क्रम3| पिछला=मथत-मथत माखन रहे -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जे गरीब सों हित करें -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=मथत-मथत माखन रहे -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जे ग़रीब सों हित करें -रहीम}}
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Revision as of 09:17, 12 April 2018

जिहि ‘रहीम’ तन मन लियो, कियो हिए बिच भौन।
तासों दु:ख-सुख कहन की, रही बात अब कौन॥

अर्थ

जिस प्रिय मित्र ने तन और मन पर कब्जा कर रक्खा है और हृदय में जो सदा के लिए बस गया है, उससे सुख और दु:ख कहने की अब कौन-सी बात बाकी रह गयी है?[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दोनों के तन एक हो गये, और मन भी दोनों के एक ही।

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