अधोनी मैसूर: Difference between revisions
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*इस दुर्ग पर 1347 ई. में [[अलाउद्दीन खिलजी]] और 1375 ई0 में मुजाहिदशाह बहमनी ने अधिकार कर लिया था। | *इस दुर्ग पर 1347 ई. में [[अलाउद्दीन खिलजी]] और 1375 ई0 में मुजाहिदशाह बहमनी ने अधिकार कर लिया था। | ||
*तत्पश्चात् कुछ समय तक अधोनी का क़िला [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] राज्य के अंतर्गत रहा किंतु [[तालीकोट का युद्ध|तालीकोट के युद्ध]] (1565 ई0) के पश्चात् यहाँ बीलजापुर रियासत का अधिकार हो गया। | *तत्पश्चात् कुछ समय तक '''अधोनी का क़िला''' [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] राज्य के अंतर्गत रहा किंतु [[तालीकोट का युद्ध|तालीकोट के युद्ध]] (1565 ई0) के पश्चात् यहाँ बीलजापुर रियासत का अधिकार हो गया। | ||
*अधोनी में 13वीं शती का पत्थर-चूने का बना एक मंदिर भी है जिसकी दीवारों पर मूर्तियां उकेरी हुई हैं। | *अधोनी में 13वीं शती का पत्थर-चूने का बना एक मंदिर भी है जिसकी दीवारों पर मूर्तियां उकेरी हुई हैं। | ||
*एक काले पत्थर पर [[देवनागरी लिपि]] में एक अभिलेख खुदा हुआ है। | *एक काले पत्थर पर [[देवनागरी लिपि]] में एक [[अभिलेख]] खुदा हुआ है। | ||
Revision as of 13:23, 27 April 2018
- हिंदूकाल के दुर्ग के लिए यह स्थान उल्लेखनीय है।
- इस दुर्ग पर 1347 ई. में अलाउद्दीन खिलजी और 1375 ई0 में मुजाहिदशाह बहमनी ने अधिकार कर लिया था।
- तत्पश्चात् कुछ समय तक अधोनी का क़िला विजयनगर राज्य के अंतर्गत रहा किंतु तालीकोट के युद्ध (1565 ई0) के पश्चात् यहाँ बीलजापुर रियासत का अधिकार हो गया।
- अधोनी में 13वीं शती का पत्थर-चूने का बना एक मंदिर भी है जिसकी दीवारों पर मूर्तियां उकेरी हुई हैं।
- एक काले पत्थर पर देवनागरी लिपि में एक अभिलेख खुदा हुआ है।
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