गोत्र पदवी: Difference between revisions

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गोत्र पदवी पाणिनिकालीन हिन्दू परिवार में प्रचलित एक प्रथा थी।

किसी परिवार में कौन व्यक्ति गार्ग्य और कौन सा गार्ग्यण था, इसका समाज में वास्तविक महत्व था। समाज के प्राचीन संगठन में प्रत्येक गृहपति अपने घर का प्रतिनिधि माना जाता था। वही उस परिवार की ओर से जाति बिरादरी की पंचायत में प्रतिनिधि बनकर बैठता था। ऐसा व्यक्ति उस परिवार में मूर्धाभिषिक्त होता था अर्थात उस परिवार में सबसे वृद्ध स्थविर या ज्येष्ठ होने के कारण उसी के सिर पगड़ी बांधी जाती थी। पगड़ी बांधने की यह प्रथा आज भी प्रत्येक हिन्दू परिवार में प्रचलित है और प्रत्येक पुत्र अपने पिता का उत्तराधिकारी मूर्धाभिषिक्त होकर ही प्राप्त करता है। यदि किसी व्यक्ति के 5 पुत्र हों तो उसका ज्येष्ठ पुत्र ही उसके स्थान में मूर्धाभिषिक्त होकर उसकी गोत्र पदवी प्राप्त करता है। शेष चारों पुत्र बड़े भाई के रहते मूर्धाभिषिक्त नहीं होते। संयुक्त परिवार की यह प्रथा बड़े नपे-तुले ढंग से चलती थी। जेष्ठ भाई यदि गार्ग्य पदवी धारण करता तो उसके जीवनकाल में सब छोटे भाई गार्ग्यायण कहे जाते थे।[1][2]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भ्रातरि च ज्यायसि, 4/1 /164
  2. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 107 |

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