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*जो गरम न हो, ठंडा, °अंशु, °धामन्-चन्द्रमा जिनकी किरणें ठंडी होती हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=10|url=|ISBN=}}</ref>
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'''अधर्म''' ([[पुल्लिंग]]) [न. त.]
::1. बेईमानी, दुष्टता, अन्याय; अधर्मेण अन्यायपूर्वक
::2. अन्याय्य कर्म, अपराध या दुष्कृत्य, पाप। [[धर्म]] और अधर्म, न्यायशास्त्र में वर्णित 24 गुणों में दो गुण हैं और यह [[आत्मा]] से संबंध रखते हैं, ये दोनों क्रमशः सुख और दुःख के विशिष्ट कारण हैं, यह इन इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु इनका अनुमान पुनर्जन्म तथा तर्कना के द्वारा लगाया जाता है।
::3. [[प्रजापति]] या [[सूर्य देव|सूर्य]] के एक अनुचर का नाम,-'''र्मा''' साकार बेईमानी, -'''र्मम्''' विशेषणों से रहित, [[ब्रह्मा]] की उपाधि।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=29|url=|ISBN=}}</ref>
सम.-'''आत्मन्''',-'''चारिन्''' ([[विशेषण]]) दुष्ट, पापी।





Latest revision as of 08:41, 1 September 2023

अधर्म (विशेषण) [न. ब.]

  • जो गरम न हो, ठंडा, °अंशु, °धामन्-चन्द्रमा जिनकी किरणें ठंडी होती हैं।[1]


अधर्म (पुल्लिंग) [न. त.]

1. बेईमानी, दुष्टता, अन्याय; अधर्मेण अन्यायपूर्वक
2. अन्याय्य कर्म, अपराध या दुष्कृत्य, पाप। धर्म और अधर्म, न्यायशास्त्र में वर्णित 24 गुणों में दो गुण हैं और यह आत्मा से संबंध रखते हैं, ये दोनों क्रमशः सुख और दुःख के विशिष्ट कारण हैं, यह इन इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु इनका अनुमान पुनर्जन्म तथा तर्कना के द्वारा लगाया जाता है।
3. प्रजापति या सूर्य के एक अनुचर का नाम,-र्मा साकार बेईमानी, -र्मम् विशेषणों से रहित, ब्रह्मा की उपाधि।[2]


सम.-आत्मन्,-चारिन् (विशेषण) दुष्ट, पापी।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 10 |
  2. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 29 |

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