बाबू उमानाथ सिंह: Difference between revisions
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बाबू उमानाथ सिंह 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर बाबू भूप सिंह के पांचवे वंशज थे। | बाबू उमानाथ सिंह 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर बाबू भूप सिंह के पांचवे वंशज थे। | ||
उनकी शैक्षणिक यात्रा वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज से प्रारंभ हुई। उन्होंने 1956 में प्रतिष्ठित बनारस | उनकी शैक्षणिक यात्रा [[वाराणसी]] के उदय प्रताप कॉलेज से प्रारंभ हुई। उन्होंने 1956 में प्रतिष्ठित [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा 1958 में प्राचीन इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने 1970 में [[गोरखपुर|गोरखपुर विश्वविद्यालय]] से मध्यकालीन इतिहास में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
Revision as of 12:23, 26 April 2024
बाबू उमानाथ सिंह अवध की पूर्ववर्ती कोहरा तालुकदारी के पूर्व उत्तराधिकारी एवं एक शिक्षाविद थे। वें अवध विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थें और उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों[1] में से एक थें।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
वर्तमान उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में स्थित कोहरा तालुकदारी में 1936 में जन्मे बाबू उमानाथ सिंह बाबू प्रताप बहादुर सिंह के पुत्र थे। बाबू प्रताप बहादुर सिंह कोहरा नरेश बाबू बेनी बहादुर सिंह के अनुज थे। बाबू बेनी बहादुर सिंह के पुत्र न होने के कारण, उनके भाई, बाबू प्रताप बहादुर सिंह को कोहरा का उत्तराधिकार मिला। बाबू उमानाथ सिंह 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर बाबू भूप सिंह के पांचवे वंशज थे।
उनकी शैक्षणिक यात्रा वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज से प्रारंभ हुई। उन्होंने 1956 में प्रतिष्ठित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा 1958 में प्राचीन इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने 1970 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से मध्यकालीन इतिहास में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की।
कार्य
बाबू उमानाथ सिंह ने स्वयं को शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर दिया। उन्होंने क्षेत्र में शैक्षिक मानकों को बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया। अवध विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने शिक्षा जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के संस्थापक सदस्य के रूप में क्षेत्र की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
व्यक्तिगत जीवन
जौनपुर के ख्याति प्राप्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर सीताराम सिंह की पुत्री द्रौपदी देवी के साथ बाबू उमानाथ सिंह का विवाह हुआ। इस दंपति को चार पुत्र हुए, क्रमशः बाबू राघवेंद्र प्रताप सिंह, कुंवर विजय सिंह, कुंवर डॉ. संजय सिंह और कुंवर धनंजय सिंह।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Uttar Pradesh History Congress (Ed.). (1986). Uttar Pradesh History Congress: Proceedings of the I Session, T.N.P.G. College, Tanda, 1985. Uttar Pradesh History Congress.
बाहरी कड़ियाँ