श्रीगुप्त: Difference between revisions

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[[कुषाण|कुषाण]] साम्राज्य के पतन के समय उत्तरी [[भारत]] में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उससे लाभ उठाकर बहुत से प्रान्तीय सामन्त राजा स्वतंत्र हो गए थे। सम्भवतः इसी प्रकार का एक व्यक्ति 'श्रीगुप्त' भी था। उसने [[मगध]] के कुछ पूर्व में चीनी यात्री [[इत्सिंग]] के अनुसार [[नालन्दा]] से प्रायः चालीस योजन पूर्व की तरफ़, अपने राज्य का विस्तार किया था। अपनी शक्ति को स्थापित कर लेने के कारण उसने 'महाराज' की पदवी ग्रहण की। चीनी बौद्ध यात्रियों के निवास के लिए उसने 'मृगशिख़ावन' के समीप एक विहार का निर्माण कराया था, और उसका ख़र्च चलाने के लिए चौबीस गाँव प्रदान किए थे। गुप्त राजा स्वयं [[बौद्ध]] नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय भारत में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्वपूर्व दान दिया था। दो मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिनमें से एक पर 'गुतस्य' और दूसरी पर 'श्रीगुप्तस्य' लिखा है। सम्भवतः ये इसी महाराज श्रीगुप्त की हैं।
*[[कुषाण|कुषाण]] साम्राज्य के पतन के समय उत्तरी [[भारत]] में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उससे लाभ उठाकर बहुत से प्रान्तीय सामन्त राजा स्वतंत्र हो गए थे।  
*सम्भवतः इसी प्रकार का एक व्यक्ति 'श्रीगुप्त' भी था।  
*उसने [[मगध]] के कुछ पूर्व में चीनी यात्री [[इत्सिंग]] के अनुसार [[नालन्दा]] से प्रायः चालीस योजन पूर्व की तरफ़, अपने राज्य का विस्तार किया था।  
*अपनी शक्ति को स्थापित कर लेने के कारण उसने 'महाराज' की पदवी ग्रहण की।  
*चीनी बौद्ध यात्रियों के निवास के लिए उसने 'मृगशिख़ावन' के समीप एक विहार का निर्माण कराया था, और उसका ख़र्च चलाने के लिए चौबीस गाँव प्रदान किए थे।  
*गुप्त राजा स्वयं [[बौद्ध]] नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय भारत में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्वपूर्व दान दिया था।  
*दो मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिनमें से एक पर 'गुतस्य' और दूसरी पर 'श्रीगुप्तस्य' लिखा है। सम्भवतः ये इसी महाराज श्रीगुप्त की हैं।


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Revision as of 14:01, 28 September 2010

  • कुषाण साम्राज्य के पतन के समय उत्तरी भारत में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उससे लाभ उठाकर बहुत से प्रान्तीय सामन्त राजा स्वतंत्र हो गए थे।
  • सम्भवतः इसी प्रकार का एक व्यक्ति 'श्रीगुप्त' भी था।
  • उसने मगध के कुछ पूर्व में चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार नालन्दा से प्रायः चालीस योजन पूर्व की तरफ़, अपने राज्य का विस्तार किया था।
  • अपनी शक्ति को स्थापित कर लेने के कारण उसने 'महाराज' की पदवी ग्रहण की।
  • चीनी बौद्ध यात्रियों के निवास के लिए उसने 'मृगशिख़ावन' के समीप एक विहार का निर्माण कराया था, और उसका ख़र्च चलाने के लिए चौबीस गाँव प्रदान किए थे।
  • गुप्त राजा स्वयं बौद्ध नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय भारत में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्वपूर्व दान दिया था।
  • दो मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिनमें से एक पर 'गुतस्य' और दूसरी पर 'श्रीगुप्तस्य' लिखा है। सम्भवतः ये इसी महाराज श्रीगुप्त की हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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