अजंता की गुफ़ाएं: Difference between revisions

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चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य [[महाराष्ट्र]], पश्चिमी [[भारत]] में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। [[औरंगाबाद]] से 105 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।
चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य [[महाराष्ट्र]], पश्चिमी [[भारत]] में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। [[औरंगाबाद]] से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।


लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और बिहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।  
लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और बिहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।  


अजंता की गुफाएं [[बौद्ध धर्म]] द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। [[बौद्ध]] तथा [[जैन]] सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए [[महाराष्ट्र]] में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक सेट बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो [[बोधिसत्व]] के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।
[[यूनेस्‍को]] द्वारा 1983 से '''विश्‍व विरासत स्‍थल''' घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं और इनका [[भारत]] में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्‍मक उपयोग और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्‍वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्‍हें कलात्‍मक रचनात्‍मकता का एक उच्‍च स्‍तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से [[बौद्ध]], [[हिन्‍दू]] और [[जैन]] धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।
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Revision as of 00:07, 18 October 2010

चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य महाराष्ट्र, पश्चिमी भारत में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। औरंगाबाद से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।

लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और बिहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।

अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। बौद्ध तथा जैन सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक सेट बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।

यूनेस्‍को द्वारा 1983 से विश्‍व विरासत स्‍थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्‍मक उपयोग और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्‍वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्‍हें कलात्‍मक रचनात्‍मकता का एक उच्‍च स्‍तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्‍दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।

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