हिरण्याक्ष: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
Line 2: Line 2:
==हिरण्याक्ष / Hiranyaksh==
==हिरण्याक्ष / Hiranyaksh==
*हिरण्याक्ष अपनी शक्ति पर बहुत गर्व करता था। वह पहले तो स्वर्ग में घूमता रहा। उसके विशाल शरीर और गदा को देखकर कोई भी उससे युद्ध करने सामने नहीं आया। युद्ध की पिपासा से आतुर वह समुद्र में विचरण करने लगा।  
*हिरण्याक्ष अपनी शक्ति पर बहुत गर्व करता था। वह पहले तो स्वर्ग में घूमता रहा। उसके विशाल शरीर और गदा को देखकर कोई भी उससे युद्ध करने सामने नहीं आया। युद्ध की पिपासा से आतुर वह समुद्र में विचरण करने लगा।  
*[[वरुण]] ने उसे [[विष्णु]] को वराह के रूप में दाढ़ी की नोंक पर टिकाकर पृथ्वी को समुद्र के ऊपर ले जाते देखा तो वह परिहास के स्वर में वराह के लिए ‘जंगली’ इत्यादि विशेषणों का प्रयोग करके उनसे बार-बार प्रथ्वी को छोड़ देने के लिए कहने लगा।  
*[[वरुण]] ने उसे [[विष्णु]] को वराह के रूप में दाढ़ी की नोंक पर टिकाकर पृथ्वी को समुद्र के ऊपर ले जाते देखा तो वह परिहास के स्वर में वराह के लिए ‘जंगली’ इत्यादि विशेषणों का प्रयोग करके उनसे बार-बार पृथ्वी को छोड़ देने के लिए कहने लगा।  
*[[पृथ्वी]] के लिए बैर बांधकर यज्ञमूर्ति वराह तथा हिरण्याक्ष में गदा-युद्ध होने लगा। [[ब्रह्मा]] ने [[विष्णु]] से कहा कि हिरण्याक्ष ब्रह्मा से वर प्राप्त होने के कारण विशेष शक्तिशाली है।  
*[[पृथ्वी]] के लिए बैर बांधकर यज्ञमूर्ति वराह तथा हिरण्याक्ष में गदा-युद्ध होने लगा। [[ब्रह्मा]] ने [[विष्णु]] से कहा कि हिरण्याक्ष ब्रह्मा से वर प्राप्त होने के कारण विशेष शक्तिशाली है।  
*हिरण्याक्ष ने आसुरी मायाजाल का प्रसार किया। वराह ने उस माया को नष्ट कर अपने पैर से प्रहार किया। हिरण्याक्ष ने वराह के मुख का दर्शन करते-करते शरीर त्याग दिया।<ref>श्रीमद् भागवत, तृतीय स्कंध, अध्याय 17-19<br />
*हिरण्याक्ष ने आसुरी मायाजाल का प्रसार किया। वराह ने उस माया को नष्ट कर अपने पैर से प्रहार किया। हिरण्याक्ष ने वराह के मुख का दर्शन करते-करते शरीर त्याग दिया।<ref>श्रीमद् भागवत, तृतीय स्कंध, अध्याय 17-19<br />
हरि वंश पुराण, भविष्यपर्व,38, 39|-</ref>
हरि वंश पुराण, भविष्यपर्व,38, 39|-</ref>


==टीका-टिप्पणी==
==टीका-टिप्पणी==

Revision as of 10:21, 30 March 2010

हिरण्याक्ष / Hiranyaksh

  • हिरण्याक्ष अपनी शक्ति पर बहुत गर्व करता था। वह पहले तो स्वर्ग में घूमता रहा। उसके विशाल शरीर और गदा को देखकर कोई भी उससे युद्ध करने सामने नहीं आया। युद्ध की पिपासा से आतुर वह समुद्र में विचरण करने लगा।
  • वरुण ने उसे विष्णु को वराह के रूप में दाढ़ी की नोंक पर टिकाकर पृथ्वी को समुद्र के ऊपर ले जाते देखा तो वह परिहास के स्वर में वराह के लिए ‘जंगली’ इत्यादि विशेषणों का प्रयोग करके उनसे बार-बार पृथ्वी को छोड़ देने के लिए कहने लगा।
  • पृथ्वी के लिए बैर बांधकर यज्ञमूर्ति वराह तथा हिरण्याक्ष में गदा-युद्ध होने लगा। ब्रह्मा ने विष्णु से कहा कि हिरण्याक्ष ब्रह्मा से वर प्राप्त होने के कारण विशेष शक्तिशाली है।
  • हिरण्याक्ष ने आसुरी मायाजाल का प्रसार किया। वराह ने उस माया को नष्ट कर अपने पैर से प्रहार किया। हिरण्याक्ष ने वराह के मुख का दर्शन करते-करते शरीर त्याग दिया।[1]

टीका-टिप्पणी

  1. श्रीमद् भागवत, तृतीय स्कंध, अध्याय 17-19
    हरि वंश पुराण, भविष्यपर्व,38, 39|-