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([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Mouth) मुख [[आहारनाल]] का अंग होते हैं। मुख एक अनुप्रस्थ काट के रूप में होता है तथा दो माँसल [[होठ|होठों]] से घिरा रहता है तथा मुखग्रासन गुहिका में खुलता है। दोनों होठ मुख को खोलने और बन्द करने के अतिरिक्त भोजन को पकड़ने तथा बोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य की मुख ग्रासन गुहिका सदैव [[लार]] नामक तरल से नम बनी रहती है। | ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Mouth) '''{{PAGENAME}}''' अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से सबंधित उल्लेख है। मुख [[आहारनाल]] का अंग होते हैं। मुख एक अनुप्रस्थ काट के रूप में होता है तथा दो माँसल [[होठ|होठों]] से घिरा रहता है तथा मुखग्रासन गुहिका में खुलता है। दोनों होठ मुख को खोलने और बन्द करने के अतिरिक्त भोजन को पकड़ने तथा बोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य की मुख ग्रासन गुहिका सदैव [[लार]] नामक तरल से नम बनी रहती है। | ||
मुख ग्रासन गुहिका मुखगुहा तथा [[ग्रसनी]] के मध्य होती है। इसका बाहरी भाग मुखगुहा तथा पश्च भाग ग्रसनी कहलाता है। मुख गुहा की छत को तालू कहते हैं। यह मुख गुहा को श्वसन मार्ग से अलग करती है। तालू का अग्रभाग अस्थि निर्मित होता है। इसे कठोर तालू कहते हैं। इसमें पैलेटाइन अस्थि तथा मैक्सिला तथा प्री—मैक्सिला के पैलेटाइन प्रवर्ध होते हैं। तालू का पिछला भाग कोमल तालू कहलाता है। इसका निर्माण उपास्थि से होता है। इसका पिछला भाग काग या अधिजिह्वा के रूप में मुखगुहा या ग्रसनी गुहा के मध्य लटका रहता है। ग्रसनी के पार्श्वों में एक जोड़ी गलांकुर या टाँसिल्स स्थित होते हैं। ये लसिका [[ऊतक]] से निर्मित होते हैं। | मुख ग्रासन गुहिका मुखगुहा तथा [[ग्रसनी]] के मध्य होती है। इसका बाहरी भाग मुखगुहा तथा पश्च भाग ग्रसनी कहलाता है। मुख गुहा की छत को तालू कहते हैं। यह मुख गुहा को श्वसन मार्ग से अलग करती है। तालू का अग्रभाग अस्थि निर्मित होता है। इसे कठोर तालू कहते हैं। इसमें पैलेटाइन अस्थि तथा मैक्सिला तथा प्री—मैक्सिला के पैलेटाइन प्रवर्ध होते हैं। तालू का पिछला भाग कोमल तालू कहलाता है। इसका निर्माण उपास्थि से होता है। इसका पिछला भाग काग या अधिजिह्वा के रूप में मुखगुहा या ग्रसनी गुहा के मध्य लटका रहता है। ग्रसनी के पार्श्वों में एक जोड़ी गलांकुर या टाँसिल्स स्थित होते हैं। ये लसिका [[ऊतक]] से निर्मित होते हैं। |
Revision as of 07:34, 27 November 2010
(अंग्रेज़ी:Mouth) मुख अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से सबंधित उल्लेख है। मुख आहारनाल का अंग होते हैं। मुख एक अनुप्रस्थ काट के रूप में होता है तथा दो माँसल होठों से घिरा रहता है तथा मुखग्रासन गुहिका में खुलता है। दोनों होठ मुख को खोलने और बन्द करने के अतिरिक्त भोजन को पकड़ने तथा बोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य की मुख ग्रासन गुहिका सदैव लार नामक तरल से नम बनी रहती है।
मुख ग्रासन गुहिका मुखगुहा तथा ग्रसनी के मध्य होती है। इसका बाहरी भाग मुखगुहा तथा पश्च भाग ग्रसनी कहलाता है। मुख गुहा की छत को तालू कहते हैं। यह मुख गुहा को श्वसन मार्ग से अलग करती है। तालू का अग्रभाग अस्थि निर्मित होता है। इसे कठोर तालू कहते हैं। इसमें पैलेटाइन अस्थि तथा मैक्सिला तथा प्री—मैक्सिला के पैलेटाइन प्रवर्ध होते हैं। तालू का पिछला भाग कोमल तालू कहलाता है। इसका निर्माण उपास्थि से होता है। इसका पिछला भाग काग या अधिजिह्वा के रूप में मुखगुहा या ग्रसनी गुहा के मध्य लटका रहता है। ग्रसनी के पार्श्वों में एक जोड़ी गलांकुर या टाँसिल्स स्थित होते हैं। ये लसिका ऊतक से निर्मित होते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ